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'कामेंग' शब्द नदी की बहती गति और भारतीय गौरव गाथा का परिचायक है। अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले में गौरी सेन पर्वत के एक ग्लेशियर से निकलकर 'कामेंग' नदी असम के शोणितपुर जिले में प्रवेश करती है। यह तेजपुर में कलियाभोमोरा सेतु में ब्रह्मपुत्र नदी में मिलती है। इसे असम में जियाभरली के नाम से जाना जाता है। यह नदी दमन, रूढ़िवादिता तथा अभाव के पथरीले उतार-चढ़ावों से गुजरने वाली निरंतर संघर्षरत मानव सभ्यता व अस्तित्व का प्रतीक हैं।नदी विभिन्न सभ्यताओं और संस्कृति के समन्वय का जीता जागता उदाहरण है। यह नदी अनेक सभ्यताओं और संस्कृतियों के मिलन और टकराव का प्रतीक रही है। अरुणाचल की स्रोतस्विनी प्रवाह 'कामेंग' असम के महाबाहु ब्रह्मपुत्र के साथ एकात्म होकर पूर्वोत्तर भारत की विजयी गाथा को प्रतिध्वनित करती है। यह प्रवाहिनी नदी विकसित मानवीय सभ्यता के गतिशीलता को रेखांकित करते हैं।
इसकी यही प्रवाहमयता साहित्य, समाज और भाषा समुदाय की धरोहर हैं। कामेंग नदी के तट पर विकसित कामेंग सीमांत पर 62 के चीन-भारतीय युद्ध में भारतीय सैनिकों की एक छावनी थी, वे चीनी सेना के खिलाफ लड़ रहे थे। 1962 ई. में कामेंग सीमा पर भारत के कई जवान शहीद हुए थे। इस प्रकार 'कामेंग' शब्द की एक भौगोलिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि भी है। यहां तक 'कामेंग' शब्द को परिभाषित एवं उसके व्युत्पत्तिपरक अर्थों को मुखर किया गया हैं। मानविकी व साहित्यिक पत्रिका के 'कामेंग' नामाकरण में निहित अभिप्राय को मनुष्य के साथ साथ साहित्य और भाषा की सतत गतिशीलता को अभिव्यक्त करने के लिए प्रयोग किया गया हैं | यही गति साहित्य व समाज की ध्वन्यात्मक, रूपात्मक और अर्थात्मक प्रगति हैं।
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