कामेंग ई-पत्रिका

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साहित्यिक पत्रिका

Literary Journal

कामेंग अर्धवार्षिक ई-पत्रिका/सहकर्मी समीक्षा जर्नल/जनवरी-जून,2024/खण्ड-1/अंक-1

संपादक - अंजु लता

शोधालेख

मोहनदास नैमिशराय की कहानियों में आधुनिकताबोध

-बिभूति बिक्रम नाथ

शोधार्थी

हिंदी विभाग, तेजपुर विश्वविद्यालय, असम

सारांश:

मोहनदास नैमिशराय वर्तमान दलित साहित्य आंदोलन के सशक्त लेखक हैं | उनका  साहित्य सत्तर और अस्सी के दशक में दलित उत्पीड़न और अत्याचार की अनगिनत घटनाओं को प्रकाश में लाता है। यह दलित चेतना के उदय और प्रतिरोध को भी उजागर करता है। उनकी कहनियाँ दलित जीवन के विभिन्न पहलूओं और संघर्षों को उजागर करती है। उनके  ‘आवाजें और हमारा जवाब’ कहानी संग्रह जहाँ दलित जीवन की त्रासदीजन्य सच्चाइयों को सामने लाती है, वहीं दलितों के प्रति सवर्ण समाज के रवैये और सोच को भी उजागर करती है। मोहनदास नैमिशराय ने अपने दलित साहित्य में उसी स्तर की संवेदनशीलता और अनुभव को प्रस्तुत किया है, जो यथार्थ के धरातल पर उपजीव्य हैं।   उन्होंने अपने साहित्य में समतावादी विचारों का आंदोलन शुरू करने की कोशिश की है। उनका साहित्य हमें विशुद्ध सैद्धांतिक मतों और मतभेदों के चक्र से कलात्मक और दार्शनिक दृष्टिकोण से दलित समाज  के अनुभव की सरोकार में ले जाता है।

बीज शब्द:

दलित, प्रतिरोध, उपजीव्य, सरोकार, दार्शनिक, आंदोलन, प्रगतिशील, अस्तित्वहीन, वैचारिकी, विद्रोह

मूल विषय:

            दलित साहित्यिक आंदोलन केवल एक आंदोलन नहीं बल्कि एक प्रगतिशील दर्शन और सरोकार की शुरुआत है। दलित जनमानस ने अपने साथ हुए अन्याय के हर पल को बारीकी से समय- फलक पर दर्ज कर रहा है। वह समाज में अपने लिए एक सुरक्षित एवं सम्मानजनक स्थान के लिए आशावादी है। अस्तित्वहीन और शोषण से पीड़ित  जीवन के प्रति उनका विद्रोह कितना प्रबल और तीव्र है - इसका एहसास हमें इस वैचारिकी  की आने वाली पीढ़ियों को देखकर हो सकता है। दलित विमर्श केवल दस्तावेजों की मुखर क्रांतिकारी स्वर नहीं हैं, बल्कि भारतीय समाज के हर एक जातिवादी और मनुवादी व्यवस्था के प्रति विद्रोह का स्वर हैं| यह स्वर दलित समाज के संवर्धन और प्रगतिशीलता का स्वर हैं| हिंदी दलित साहित्य का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण लेखन अस्सी और नब्बे के दशकों के दौरान ही हुआ है। इस दौरान ओमप्रकाश वाल्मीकि, मोहनदास नैमिशराय, कँवल भारती, माता प्रसाद, दयानंद बटोही, डॉ. एन. सिंह, डॉ.पुरुषोत्तम सत्यप्रेमी, सूरजपाल चौहान, मलखान सिंह, श्यौराजसिंह बेचैन और जयप्रकाश कर्दम आदि प्रमुख कवियों के रूप में उभरे।1 दलित साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से दलितों के प्रति अकल्याणकारी पूर्वाग्रहों और उनके विकास में बाधक विचारधारा को गहराई से समझा और साहित्य में अभिव्यक्त किया। उन्होंने समाज की गरीबी, छुआछूत, अज्ञानता, अंधविश्वास, सांस्कृतिक विकृति, पारिवारिक जीवन में तनाव और जातिगत भेदभाव से उत्पन्न पीड़ा से जूझ रहे दलितों को क्रान्तिकारी चेतना के माध्यम से मुक्ति का संदेश दिया है। दलित लेखकों में सशक्त हस्ताक्षर मोहनदास नैमिशराय ने अपने साहित्य में न केवल जीवन के संघर्षों को सिद्ध किया है, बल्कि संरचनात्मक असमानता पर भी प्रहार किया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि नैमिशराय जी का साहित्य दलितों की आवाज बनकर उन्हें उनकी पहचान दिलाने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने अपने कार्यों के माध्यम से विभिन्न शोषणों  और निषेधों के बीच जीवित रहने के लिए दलितों के संघर्ष को स्पष्ट से प्रस्तुत किया है। नैमिशराय ने अपनी रचनाओं में दलित परिवेश का जिस सूक्ष्मता से चित्रण किया है वह अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। एक कहानीकार  के रूप में नैमिशराय सामाजिक परिवेश से टकराते हुए समाज का यथार्थ चित्रण करने में सफल रहे हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं में यथार्थ का चित्रण इस हद तक किया है कि रचना दस्तावेज  न रहकर समाज का दर्पण बन जाती है। इन कहानियों का उद्देश्य सिर्फ दलितों की पीड़ा को व्यक्त करना ही नहीं है, बल्कि उनके भीतर जल रहे गुस्से को धीरे-धीरे चेतना में परिवर्तित होते दिखाने के प्रति भी सजग रही हैं। नैमिशराय जी ने कहानी संग्रह 'आवाज़े' के माध्यम से दलित वर्ग की पीड़ा का सुन्दर चित्रण किया है। दलित साहित्य को विद्रोही एवं क्रांतिकारी चेतना के साहित्य के रूप में प्रतिष्ठित किया है। दलित साहित्य का उद्देश्य एक वैकल्पिक संस्कृति और समाज में दलितों की एक अलग पहचान सृजित करना है। दलित लेखक किसी समूह, मसलन किसी जाति विशेष, सम्प्रदाय के खिलाफ नहीं है। लेकिन व्यवस्था के विरुद्ध है... चाहे वह सरकारी, सामाजिक, धार्मिक संस्था की व्यवस्था हो, जो अपनी सोच और दृष्टिकोण से दलितों का शोषण और दमन करती हो। दलितों की सबसे प्राथमिक आवश्यकता अपनी अस्मिता की तलाश है, जो हजारों साल के इतिहास में दबा दी गई है। अपनी पहचान की खोज करना, दलित संस्कृति का मूलभूत बदलाव के लिए प्रतिबद्धता के साथ तत्पर रहता है। दलित साहित्य में जो आक्रोश दिखाई देता है, वह ऊर्जा का काम कर रहा है। 2 आवाजें कहानी संग्रह की पहली कहानी आवाजें में ठाकुर औतार सिंह के खिलाफ सदियों से पीड़ित सफाईकर्मियों के जीवंत विद्रोह की अभिव्यक्ति है। मकदूमपुर नामक गांव में मेहतर समुदाय के लोग जमींदारों के  जूठन खाकर अपना पेट भरते थे। एक दिन सभी सफाई कर्मचारी इकट्ठे होते हैं और प्रतिज्ञा करते हैं कि वे न तो सफाई करेंगे और न ही गंदगी साफ करेंगे। दलितों में बदलाव की यह भावना दिन-ब-दिन मजबूत होती जा रही थी|  सफाई कर्मचारी अपनी पंचायत की बैठक में निर्णय लेते हैं कि जो भी कूड़ा उठाने जाएगा उसका हुक्का पानी बंद कर दिया जाएगा। ठाकुर की बहू एक बच्चे को जन्म देती है लेकिन सफाईकर्मियों के समूह में से कोई भी वहां नहीं जाता है। एक सप्ताह बाद गांव में कूड़ा-कचरा निकलना शुरू हो जाता है। ठाकुर अपने कारिंदे को सफाईकर्मियों के समूह में भेजता है। लेकिन इतवारी साफ-साफ शब्दों में माना कर देती हैं| कारिंदे को सपने में भी यकीन नहीं हुआ कि इतवारी ऐसी बात कह सकता है| सफाईकर्मियों के विद्रोही स्वर को देखकर ठाकुर औतार सिंह सफाईकर्मियों के खिलाफ साजिश रचता है और दलित बस्ती के बीस-तीस लोगों को डकैती के मुकदमे में फंसाकर थाने में बंद करवा देता है। 'घायल शहर की एक बस्ती' कहानी में लेखक ने साम्प्रदायिकता के घिनौने चेहरे का चित्रण किया है। कहानी के माध्यम से नैमिशराय जी यह बताना चाहते हैं कि सांप्रदायिक दंगों से वैसे तो पूरा समाज प्रभावित होता है, लेकिन सबसे ज्यादा प्रभावित दलित ही होते हैं। सांप्रदायिक दंगों के कारण लगाया गया कर्फ्यू किस प्रकार दलितों का जीवन दयनीय बना देता है? लेखक ने 'घायल शहर की एक बस्ती'  कहानी में उसका स्पष्ट चित्रण किया है। एक सप्ताह पहले शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया था|  शाम को जब अज्जन पत्नी को प्रसव पीड़ा शुरू होती है तो सुमरती दाई तेजी से वहां पहुंचती है। रात होने से पहले ही बच्चे का जन्म हो जाता है| कर्फ्यू के कारण चारों ओर कब्रिस्तान जैसा सन्नाटा था| जब भी जरा सी आहट होती तो सुमंगली अपनी मां से चिपक जाती हैं | सुमंगली के पिता की दो साल पहले दंगे में मौत हो गई थी| तब से मां-बेटी सब्जी बेचकर अपना गुजारा करती थीं। रात में किसी ने नत्थू की रेहड़ी में आग लगा दी। नत्थू दस साल से लकड़ी बेच रहा था। वह भी लकड़ी के साथ जल गया। दंगे के दौरान रफीकन के बेटे की भी किसी ने चाकू से हत्या कर दी थी| वह सड़क पर पंक्चर बनाता था| पिछले दंगे में उसके पिता की मौत हो गई थी, इसलिए इस बार बेटे के गम में रफीकन ने रो-रोकर अपना बुरा हाल कर लिया है|  छत पर बैठा हरिया रफीकन के रोने की आवाज सुन रहा था। हरिया अपनी मुट्ठियाँ भींचता है और अपनी स्व- से संवाद करता  है| जब हरिया काम की तलाश में निकला होता है तो कोई उसे गोली मार देता है। सुबह पुलिस हरिया का शव ले जाती है।  'अपना गाँव' नैमिशराय जी की एक लम्बी, सशक्त एवं मार्मिक कहानी है। जिसमें लेखक ने दलितों पर हो रहे अत्याचारों और दलितों की सामूहिक एकता का यथार्थवादी चित्रण किया है। यह कहानी 21 जनवरी 1994 को इलाहाबाद जिले के थुरपुर थाने के दौना गांव में हुई घटना पर आधारित है, जिसमें शिवपति नाम की एक दलित महिला को गांव की मकान मालकिन शोषण किया था | कबूतरी का पति संपत गांव के जमींदार से पांच सौ रुपये कर्ज लेता है और नौकरी की तलाश में शहर चला जाता है। ठाकुर का मंझला बेटा संपत की पत्नी कबूतरी को ब्याज इकट्ठा करने के लिए उसके खेतों में काम करने के लिए कहता है। लेकिन कबूतरी ने उसे मना कर दिया| कबूतरी जलाऊ लकड़ी इकट्ठा करने के लिए जंगल में जाता है। ठाकुर जंगल से घर लौटता है और उसे दोबारा खेतों में काम करने के लिए कहता है। जब कबूतरी ने फिर से इनकार कर दिया, तो ठाकुर के मंझले बेटे सुल्तान सिंह और उसके नौकरों ने कबूतरी पर आमानवीय अत्याचार किए| 'हारे लोग' नैमिशराय की दलितों को किराए का मकान मिलने में आनेवाली हुए परेशानियों और जात-पाँत की भावना में उपजे तिरस्कार की कहानी है । दलित अधिकारी को नए शहर में आने पर किराए का मकान ढूंढने में जिस पीड़ा और अपमानबोध से गुजरना पड़ता है, वह कोई भुक्तभोगी ही समझ सकता है । इस कटु सत्य को यहाँ उजागर किया है। चेतराम कुरील का सेक्शन ऑफिसर के रूप मैं शहर में प्रमोशन होता है। यहाँ उनको किराये के लिए कोई मकान मिलता नहीं है । कसूर इतना है कि वह दलित है और अपने दलित होने को वह छुपाता नहीं ।'अधिकार चेतना' कहानी मेरठ में 30 मार्च, 1994 में बाबा साहब की प्रतिमा लगाने को लेकर पुलिस और दलित युवकों के बीच जो खूनी संघर्ष हुआ था उसी पर आधारित है । यह कहानी एक तरफ तो प्रशासन की सवर्ण परस्ती को सामने लाती है तो दूसरी तरफ, सुविधाहीन दलितों की अधिकार सजगता एकजुटता तथा संघर्षक्षमता को उकेरती है ।'गंजा पेड़' नैमिशराय की प्रतीकात्मक कहानी है। इसमें छोटे से कस्बे में स्लम जैसी दलित बस्ती का चित्रण है । नैमिशराय की 'बरसात' कहानी सवर्ण अत्याचार से मुक्ति की कहानी है। जिसमें लेखक ने दलित जीवन में पति-पत्नी के प्रेम की अभिव्यक्ति के साथ-साथ शहर में रहनेवाले दलित समाज के अभावों का चित्रण किया है।'रीत' दलित नारी यौन शोषण का पर्दाफाश करने वाली सशक्त कहानी है। कहानी में लेखक ने पूंजीपति जमींदार वर्ग किस प्रकार दलितों की बहू-बेटियों की इज्जत के साथ खिलवाड़ करते हैं इसका त्रासदीपूर्ण निरूपण किया है | 'उसके जख्म' कहानी सवर्णों के दमन का शिकार बनी दलित स्त्री की मार्मिक कहानी है । कहानी में कमला एक दलित लड़की है जो अपने बाबा के साथ रहती है। दो बरस पहले कमला की माँ चल बसी थी । कमला अट्ठारह की होती है तो गाँव का ठाकुर उसके साथ शारीरिक शोषण  करता है । कमला न्याय के लिए जमींदार के विरुध्द केस करती है।। पुलिस हीरा को केस वापिस लेने के लिए दबाव डालता है लेकिन हीरा अपनी बात पर अटल रहता है। दस महिनों से बाप-बेटी मुकदमे की तारीखों के आसपास झूल रहे थे । ठाकुर कमला के गवाहों को भी खरीद लिया था । कमला का गवाह बहादुरसिंह भी अदालत में बोलता है। जमींदार की खरीदी हुई संपूर्ण व्यवस्था के सामने कमला को विवश होना पड़ता है । हीरा इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर पाता और अदालत में ही मर जाता है । लेखक ने दलित नारी के शोषण को यथार्थ रूप में प्रस्तुत किया है ।'महाशूद्र' आवाजे कहानी-संग्रह की अंतिम कहानी है ।कहानी के माध्यम से लेखक ने मरघट पर दाह संस्कार करने वाले आचार्य और डोम की वेदना को अभिव्यक्त किया है। 'गाँव' कहानी में लेखक ने गाँव और शहर की संस्कृति का परिचय कराया है |'हमारा जवाब' कहानी जाति व्यवस्था की परतों को उघाडती है । कहानी का नायक हिम्मत सिंह को कुछ नया करने की तमन्ना थी, इसीलिए वह जीवन मंडी में मिष्ठान का खोमचा लगाता है लेकिन सवर्णों को हिम्मतसिंह का मिठाई बेचना रास नहीं आता । एक दलित की इतनी हिम्मत की सरे आम मिठाई बेचे । तीन-चार लोगों ने उसे मिठाई बेचने से मना किया लेकिन हिम्मत सिंह बिना डरे जवाब दे देता है । 'आधा सेर घी' कहानी कर्ज लेने में महाजन गरीब दलित बलवंता का आधा सेर घी भी ले लेता है जो सुमति ने अपने बेटे धन्नालाल के लिए रखा था । उसका यथार्थ चित्रण कहानीकार ने किया है । 'सपने' कहानी महानगरों में दलितों के जीवन को चित्रित करती है । रघु गाँव के जमींदार की है बेगारी को छोड़कर कुछ बनने के लिए शहर आता है । और फुटपाथ पर कप-प्लेटों को बेचता है । शहर में उसका दोस्त लालसुख रघु को पुलिस से रिश्ता बनाये रखने के लिए उसे समझाता था । बिक्री अच्छी होने से वह ज्यादा माल खरीदता है । पुलिस को रिश्वत न देने के कारण शाम को पुलिस की गाड़ी आकर रघु को रंग-बिरंगे कप प्लेटों के सामान को उठाकर गाड़ी में पटक देता है । 'खबर' कहानी में कहानीकार ने महानगरीय जीवन की व्यस्तता, जीवन की असुरक्षा का चित्रण इस कहानी में किया है । रमेश सरकारी विभाग में क्लर्क है और ज्योति एम.ए. करने के बाद प्राइवेट कंपनी में नौकरी करती है । रमेश का ट्रांसफर जब बड़े शहर में होता है तो ज्योति के भीतर कुछ करने की आशा जगी थी । आये दिन होने वाली दुर्घटनाओं की खबर से ज्योति डरती है और अपने पति रमेश को ट्राफिक से संभलकर जाने की हिदायत देती है। पति नौकरी जाता है तो ज्योति का भी जी घबराने लगता है। इसीलिए दोनों पाँच साल पहले शहर में थे उसी शहर में वापिस जाने के लिए रमेश से बात करती है। ट्रांसफर होने से पहले सड़क दुर्घटना में रमेश की मौत हो जाती है । ज्योति के घर लौटने के सपने चूड़ियों के साथ बिखर जाते हैं ।'मजूरी' कहानी सवर्णों द्वारा दलितों का आर्थिक शोषण किया जाता है। उसका सशक्त चित्रण इस कहानी में किया गया है । सुमति दलित परिवार की महिला है । वह अपनी मजदूरी मांगने के लिए अपने मालिक के घर जाती है तो उसे अकाउंटेंट नहीं आया है ऐसा बहाना बनाकर कल-परसों आने के लिए कह दिया जाता है । लेकिन एक दिन सुमति दृढ़ निश्चय करके मालिक के घर मजदूरी मांगने जाती है । दरवाजे पर दरबान उसे रोकता है तो सुमति उसे ठेल कर अंदर चली जाती है। सुमति को अपनी जिद पर अड़ी रहने के कारण मालिक महेश अपने कुत्ते से उसे कटवाता है । सुमति चिल्लाती है लेकिन उसे बचाने नहीं आता। घायल सुमति अपनी झोपड़ी में प्राण त्याग देती है| 'दर्द' कहानी में लेखक ने दलित परिवार का चित्रण किया हैं| 'दर्द' कहानी में लेखक ने दलित परिवार का चित्रण किया है। 'एक गुमनाम मौत' कहानी उपेक्षित स्वतंत्र सेनानी रामेश्वरी के मृत्यु को लेकर लिखी गई है । रामेश्वरी स्वतंत्र सेनानी की पत्नी थी और खुद भी स्वतंत्र सेनानी थी। रामेश्वरी के शवयात्रा में बीस लोग शामिल थे । राजनैतिक दल के कोई प्रतिनिधि शवयात्रा में शामिल नहीं हुए थे। लेकिन उनका पालतू कुत्ता उनकी मृत्यु पर दुःखी हुआ था|  

          नैमिशराय के साहित्य दलित समाज को अंध विश्वास, अभाव और अपमान के जीवन से मुक्त होने का भाव पैदा करती है । दलितों समाज में उत्पीड़न सदियों से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर होता आ रहा है। इससे छुटकारा पाने के लिए संघर्ष महत्वपूर्ण है । अभाव और पीड़ा के बीच इस दर्द को सहते हुए भी दलित समाज ने  शिक्षा जैसे अधिकार हासिल करने और प्रगति के पथ पर आगे बढ़ने संकल्प का निर्वाह किया है | नैमिशराय जी के कहानियों में सामाजिक  परिवेश और जाति व्यवस्था में शोषण के विभिन्न स्तरों का चित्रण किया गया है। दलित चेतना को प्रतिबिंबित करने वाली उनकी रचनाओं ने समकालीन हिंदी साहित्य में अपनी अलग पहचान बनाई है।

निष्कर्ष:

दलित विमर्श के सशक्त साहित्यकार मोहनदास नैमिशराय पिछले तीन-चार दशकों से दलित समस्याओं पर लगातार लिखते और सोचते रहे हैं। दलित समाज की हकीकत सामने लाने के लिए उन्होंने साहित्य  को अपना माध्यम बनाया। एक लेखक के रूप में मोहनदास नैमिशराय का सफर बहुत आसान नहीं रहा है। दलित आंदोलन और साहित्य उनके जीवन का साहित्य उपजीव्य हैं । उन्होंने कहानियों के माध्यम से दलित समाज के दर्द, संघर्ष, अनुभव और इतिहास को सामने लाने का काम किया है। उन्होंने अनेक पत्र-पत्रिकाओं से जुड़कर दलितों की दुर्दशा को उजागर करने तथा सामाजिक जागृति में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। दलित साहित्य के निर्माताओं में गिने जाने वाले मोहनदास नैमिशराय की कहानियाँ जातिगत शोषण और सामंतवाद की क्रूरताओं को सामने लाती हैं।मोहनदास नैमिशराय की खासियत यह है कि वे अपनी कहानियों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में निम्न जाति और उच्च जाति के लोगों के सामंती वर्चस्व को उजागर करने का काम करते हैं। अपनी कहानियों के माध्यम से मोहनदास नैमिशराय ने सामंती और अमानवीय परंपराओं के खिलाफ दलितों के गुस्से और प्रतिरोध को भी  सामने लाया है। बहरहाल, यह कहा जा सकता हैं कि मोहनदास का साहित्य दलित समाज और विमर्श का उपजीव्य साहित्य हैं, जिसमें दलित समाज के अपने अधिकार के प्रति प्रतिगुंज भी हैं और सामन्ती अमानवीयता के प्रति विद्रोह भी |

संदर्भ-सूची

  1. स.गौरीनाथ.भारतीय दलित और ओमप्रकाश वाल्मीकि.दिल्ली: अंतिका प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड,2023,पृष्ट-41
  2. वाल्मीकि,ओमप्रकाश.दलित साहित्य:अनुभव, संघर्ष एवं यथार्थ.दिल्ली: राधाकृष्ण प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड,2024, भूमिका से संग्रहित
  3. वाल्मीकि,ओमप्रकाश.दलित साहित्य:अनुभव, संघर्ष एवं यथार्थ.दिल्ली: राधाकृष्ण प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, 2024

सहायक ग्रन्थ सूची

  1. स. गौरीनाथ.भारतीय दलित साहित्य और ओमप्रकाश वाल्मीकि.दिल्ली:अंतिका प्रकाशन प्रा. लि.,2023
  2. बोर्ड,डॉ. देवीदास. दलित कहानी: समय और संवेदना.कानपूर:रोली प्रकाशन,2018
  3. सं. दुबे,अभय कुमार. आधुनिकता के आईने में दलित.नई दिल्ली: वाणी प्रकाशन,2020
  4. सक्सेन्ना,राजेश्वर. उत्तर आधुनिक विमर्श और द्वंद्ववाद.दिल्ली:नयी किताब,2019
  5. डॉ. हरदयाल.हिंदी कहानी: परम्परा और प्रगति.नई दिल्ली: वाणी प्रकाशन,2017
  6. वाल्मीकि,ओमप्रकाश.दलित साहित्य:अनुभव, संघर्ष एवं यथार्थ.दिल्ली: राधाकृष्ण प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड,2024
  7. यादव,राजेन्द्र.कहानी:अनुभव और अभिव्यक्ति. नई दिल्ली: वाणी प्रकाशन,2017
  8. मिश्र,रामदरश.हिंदी कहानी : अंतरंग पहचान. नई दिल्ली: वाणी प्रकाशन,2014

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