सहकर्मी समीक्षा जर्नल

Peer reviewed Journal

कामेंग ई-पत्रिका

Kameng E-Journal

ISSN : 3048-9040 (Online)

साहित्यिक पत्रिका

Literary Journal

कामेंग अर्धवार्षिक ई-पत्रिका/सहकर्मी समीक्षा जर्नल/जुलाई - दिसंबर,2024/खण्ड-1/अंक-1

शोधालेख
श्रम का सौन्दर्य : हरीशचन्द्र पाण्डे की कविताएँ

Received: 01 Jun, 2025 | Published online: 11 Apr, 2025 | Page No: 82-88 | URL: https://kameng.in/single.php?megid=1&pid=21


डॉ. अनिरुद्ध कुमार
असिस्टेंट प्रोफेसर
हिंदी विभाग
शोध-सार

हरीशचन्द्र  पांडे की कविता वास्तव में अपने समय के सामाजिक मुद्दों से गहराई से जुड़ी हुई है, जो समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा सामना किए जाने वाले संघर्षों, अन्याय और असमानताओं को सामने लाती है। मानवीय अनुभव के सार को पकड़ने की उनकी क्षमता, विशेष रूप से श्रम के महत्व को गहन संवेदनशीलता और व्यवहारिकता से दर्शाती है।अपनी कविताओं के माध्यम से, हरीशचन्द्र  पांडे जीवन के अक्सर अनदेखे पहलुओं को उजागर करते हैं, जैसे घरों में महिलाओं का श्रम, पूंजीवादी शोषण के सामने श्रमिकों की दुर्दशा और आम आदमी की आकांक्षाएं और संघर्ष। इन विषयों पर इतनी गहराई और अंतर्दृष्टि के साथ चिंतन करके, वह न केवल समाज की वास्तविकताओं को उजागर करते हैं, बल्कि बदलाव और सहानुभूति का आग्रह भी करते हैं। हरीशचन्द्र  पांडे की कविता समाज के सभी वर्गों  के योगदान को स्वीकार करने करते हैं| चाहे उनका लिंग, सामाजिक स्थिति या वैचारिकी  कुछ भी हो| उनकी काव्य सृजनता का प्रतिबिम्ब सामाजिक परिदृश्य की रूपरेखा हैं, जो समकालीन समाज में व्याप्त अन्याय और असमानताओं को दर्शाता है, साथ ही बेहतर भविष्य की आशा भी जगाता है। पांडे की कविताएँ जीवन की जटिलताओं को उजागर करती हैं और सामाजिक मूल्यों में गिरावट, वर्ग भेदभाव और श्रम के महत्व को उजागर करती हैं। हरीशचन्द्र  पांडे की कविताएँ महज कल्पना और कृतिमता  से आगे बढ़कर मानवीय स्थिति और समकालीन  समय के ज्वलंत मुद्दों का गहरा और प्रामाणिक प्रतिबिंब प्रस्तुत करती हैं।


बीज शब्द:

सामाजिक, असमानताओं, श्रम, पूंजीवादी, संवेदनशीलता, अन्याय, कविता, अंतर्दृष्टि, समाज


मूल विषय:

 कविता हमेशा से ही अन्याय और असमानता के खिलाफ रही है। कविता ने हमेशा समाज का काला चेहरा उजागर किया है; इस उम्मीद में कि अब सबेरा आकर रहेगा। हरीशचन्द्र पाण्डे नवें दशक के कवियों में इस मायने में अपनी एक खास पहचान बनाने में सफल हुए हैं। इनकी कविताओं में एक संपूर्ण समाज की संरचना सृजित होती है | इनकी कविताएँ वास्तव में समाज के गिरते मूल्यों के प्रति चिंतित हैं। हरीशचन्द्र पाण्डे की कविताएँ आज के समय के प्रश्नों से टकराती हैं। हम अपने विचारों को उनकी कविताओं में बख़ूबी ढूँढ़ सकते हैं। हरीशचन्द्र पाण्डे की कविताएँ जीवन के एक वृहद आयाम को अभिव्यक्त करती हैं। हरीशचन्द्र पाण्डे का काव्य संसार बहुत व्यापक है और उनका व्यक्तित्व बहुआयामी है| हरीशचन्द्र पाण्डे की कविताओं में एक बेचैनी, छटपटाहट, अकुलाहट व कुछ कर गुजरने की आकांक्षा गाढ़े रूप में मिलती है। ये बेचैनी एवं अकुलाहट इसलिए है कि समय के साथ समाज का घोर पतन हुआ है। फिर भी कवि के पास अपार धीरज है। उसके पास कुछ कर गुज़रने की तमन्ना है और है - भविष्य के प्रति आश्वस्ति। कालबोध, वर्गभेद, लोकजीवन, श्रम का महत्त्व, जिजीविषा, जैसे विषय उनकी कविताओं के मुख्य स्वर हैं। हरीशचन्द्र पाण्डे ने साधारण समझे जाने वाले विषयों को भी अपनी कविता का हिस्सा बनाया। जिन विषयों को लोग महत्त्वपूर्ण नहीं समझते उन विषयों को भी हरीशचन्द पाण्डे ने सुंदर तरीके से अभिव्यक्त करके कुशल शिल्पी होने का परिचय दिया है। मानव जीवन में घटने वाली  प्रत्येक घटना को वे बड़ी बारीक़ी से देखते हैं। और इन घटनाओं को प्रतीकों के माध्यम से मानवीय संवेदना से जोड़ते हैं। अपनी कविताओं में वे विज्ञान, भूगोल और अर्थशास्त्र आदि शुद्ध मानविकी विषयों का भी  उपयोग करते हैं। श्रम की कविताओं जैसे लेबर चौराहे पर’, ‘देहात जाती आख़िरी बस’, ‘गुंथाई का राग’  आदि में वे श्रम के अर्थशास्त्रीय दृष्टिकोण को दिखाते हैं। वे दिखाते हैं कि जमीन और पूंजी समय के साथ नहीं गलते। गलता है तो केवल श्रम! डबलरोटी की कीमत में शाम तक या एक दिन बाद भी कोई कमी नहीं होती परन्तु श्रम की क़ीमत एक घंटे में ही कम होने लगती है। लेबर चौराहे पर खड़ा मज़दूर सुबह के आठ बजते-बजते अपनी दिहाड़ी की आधी कीमत पर भी काम करने को मजबूर हो जाता है। ज़ाहिर है कि इन कविताओं पर आज की भाषा एवं समाज का प्रभाव होगा। समाज में कुछ भी ऐसा नहीं होता जिसे काव्य-सृजन के लिए त्याज्य समझा जाए। ज़रूरत सिर्फ उसे सही तरीके व सटीक संवेदनात्मक अनुभूति के माध्यम से अभिव्यक्त करने की होती है।



जीवन उनके लिए उसी तरह काम्य था



जिस तरह मुमुक्षओं के लिए मोक्ष



लोकाचार उनमें सदानीरा नदियों की तरह प्रवहमान थे



उन्हीं की हलों के फाल से



संस्कृति की लकीरें खिंची चली आई थीं



उनका आत्म तो कपास की तरह उज्जर था 1(किसान की आत्महत्या)



                      कवि का यह कथन हरीशचन्द पाण्डे के कविता निर्माण की प्रक्रिया को बताता है। अनुभूतियों की सटीक अभिव्यक्ति के लिए भाषा का भी सटीक होना बहुत अनिवार्य है। हरीशचन्द्र पाण्डे अपनी अनुभूतियों को ठीक उसी भाषा में अभिव्यक्त करते हैं जिसमें वे जानी व समझी जाती हैं। हरीशचन्द्र पाण्डे की कविताएँ अपनी विशिष्ट लोकपरक कहन में पाठक का गहरा ध्यान आकृष्ट करती हैं। हरीशचन्द्र पाण्डे के इस कहन में गहरी अंतर्दृष्टि और सूझ-बूझ दिखाई देती है । गुंथाई का रागशीर्षक कविता रोटी बनाने में स्त्रियों द्वारा किए जाने वाले श्रम के सौंदर्य को रेखांकित करती है। केदारनाथ सिंह की एक कविता है रोटी। केदारनाथ सिंह बड़ी ही खूबसूरती से कविता के माध्यम से रोटी की सुगंध तक खींच ले जाते हैं। हरीशचन्द्र पाण्डे गुंथाई का रागके माध्यम से घरेलू स्त्री के श्रम-सौन्दर्य का सुन्दर वर्णन करते हैं। हरीशचन्द्र पाण्डे आटा गूंथने के श्रम को दिखाते हैं और कहते हैं कि रोटी के फूल कर नाचने में इसी श्रम का योगदान होता है -



बहुत गहराई में छुपे हैं लौह अयस्कों के भण्डार



एक लौह-यात्रा यह भी



मज़दूरों से किसानों तक की



फ़सल एक धैर्य का नाम है बीज से बालियों तक



कितना समय लगता है कीलों को ढालने में 2 (लौह-यात्रा)



                      कहना न होगा कवि जीवन की विपुल संवेदनाओं से लैस है। मानव जीवन में घटने वाली हर एक घटना को वह बड़ी सावधानी से निहारता है और कुशलता से अभिव्यक्त करता है। हरीशचन्द्र पाण्डे की यह दृष्टि घर, परिवार, समाज, राष्ट्र से होकर वैश्विक स्तर पर घटनाओं का अवलोकन करती है और उन्हें चित्रित करती है। आज की कविता की उपलब्धि यह है कि आज कविता के पारंपरिक सौन्दर्य विधान के प्रतिपाद बदल गए हैं। सौन्दर्य देखने भर की चीज नहीं है। वह वस्तुतः अनुभव करने का बोध है। कहना न होगा कि हरीशचन्द्र पाण्डे का समूचा काव्य सौन्दर्य मानवीय सौन्दर्य की प्रतिष्ठा है। यही सौन्दर्य बोध घर से लेकर खेत, खलिहान, फैक्ट्री, दफ्तर, बस, गाड़ी, ठेला, हाट तक सब जगह वह मानवीय श्रम व्यापारों से उपजा है। आटा गूंथने के दौरान चूड़ियों का बार-बार गिरना, बांधे हुए बालों का बार-बार खुलना, मुट्ठियों से आटे को मीड़ना आदि क्रियाएँ इस पूरे श्रम व्यापार को एक संगीत के राग में बदल देती हैं। श्रम का सौंदर्य में बदलना, फिर उसका संगीत में रूपांतरण कवि की काव्यकला का उदाहरण भर है। यह मानवीय श्रम के मूल्य को आंकने की कोशिश है। यही स्त्री श्रम के कर्मरत सौन्दर्य का निरुपण है। मानो कवि मानवीय श्रम में शामिल स्त्री श्रम की उपेक्षा और बेचारगी पर जैसे समाज के खाए-पीए अघाए वर्ग की मानसिकता को कोस रहा हो। आमतौर पर समाज में श्रम का मूल्याँकन हमेशा पुरुष वर्ग के पुरुषार्थ के रूप में देखने का रिवाज है। जबकि सच्चाई यह है कि पुरुष समाज के बरक्स स्त्री समाज के श्रम का मूल्य ज्यादा है क्योंकि उसके कर्म व्यापार में विडंबनाएँ, खतरे एवं पेचीदगियाँ ज्यादा हैं। खासतौर से पुरुष प्रधान समाज में घरेलू स्त्री का श्रम सदियों से अपरिभाषित है। स्त्री श्रम की महत्ता को आज की कविता से पहले निराला ने तोड़ती पत्थरके माध्यम से  पहचाना था।



                   समकालीन समय में बाज़ार ने मज़दूरों, कामगारों  से उनकी रोजी-रोटी छीन ली है। बाज़ार की बनाई गई डबलरोटी की कीमत में दो दिन बाद भी कोई कमी नहीं होती। लेकिन सुबह के आठ बजते ही मज़दूर धेले भर का भी नहीं रह जाता। समय के साथ सिर्फ श्रम गल रहा है -



कारख़ाने के बाहर गेट के ऐन बग़ल में टँगा है यह



ये काम लेनेवालों की ओर से काम करनेवालों के लिए है



गो कि कहीं नहीं है दर्ज कारख़ाने की बैलेंसशीट में



पर एक सम्पत्ति की तरह लटका है यह



कामगारों के लिए



उनके सिर पर लगातार पड़ता एक भारी हथौड़ा है यह



भीतर तो भीतर



गेट के बाहर निकलने के बाद भी उनकी पीठों पर



दूर तक बेताल प्रश्न-सा चिपका रहता है यह 3 (कार्य ही पूजा है)



                      यह लेबर चौराहा किसी भी शहर का हो सकता है। सब कुछ बदल रहा है, लेकिन अगर कुछ नहीं बदला है तो वह है श्रम। उदारीकरण और निजीकरण ने मज़दूरों की ज़िन्दगी को अमानवीय बना दिया है।देहात जाती आखिरी बसशीर्षक कविता में कवि ने आम नागरिक की बदहाल स्थिति को दिखाया है -



देखना एक दिन



इसका मालिक बड़े मालिक में बदल जाएगा



ये देहात टाउन एरिया हो जाएगा



और ये बस ख़ून की उल्टियाँ करते-करते



बैठ जाएगी एक जगह



दिहाड़ी मज़दूर सी।



                      हरीशचन्द्र पाण्डे श्रम के महत्त्व के प्रति असंवेदनशील होते जाते मनोजगत की शिनाख्त करते हैं। वे अपनी काव्य भाषा के माध्यम से समूची व्यवस्था के चरित्र को उघाड़ते हैं। लद्दू घोड़ेकविता के माध्यम से वे समाज के श्रम विभाजन की योजनागत साजिश का पर्दाफाश करते हैं।



अछोर समय को लादे अपनी पीठ पर



लद्दू घोड़े चर रहे हैं



उनके गले में बंधी घंटियाँ



ज़िरह कर रही हैं आपस में



इतिहास में कहाँ खड़े हैं लद्दू घोड़े।4 (लद्दू घोड़े।)



                     हरीशचन्द्र पाण्डे लद्दू घोड़ों की जख़्मी पीठ को देखते हैं जिसे लद्दू घोड़े मक्खियों को उड़ाने के लिए बरकाते हैं। इतिहास ने सिर्फ उन घोड़ों का वरण किया है जिनकी पीठ को देखकर आंख फिसल जाती है या जिन पर बैठकर राजपुरुष शिकार करने के लिए निकलते हैं। लेकिन हरीशचन्द्र पाण्डे लद्दू घोड़ों के श्रम के महत्त्व को समझाते हैं -



अस्तबलों में कहाँ थी उनकी जगह पता नहीं



पर वे यात्रा के पड़ावों में और युद्ध-शिविरों में



सम्राटों से दो दिन पहले मौजूद थे।5 (लद्दू घोड़े।)



                     हरीशचन्द्र पाण्डे लद्दू घोड़ों के श्रम को प्रतिरोध की संस्कृति के एक प्रतीक के रूप में दिखाते हैं। कवि का कहना है कि जब किसी भी स्वर्णयुग की कल्पना बिना जख़्मी पीठों के संभव नहीं है, तो इतिहास में उन जख़्मी पीठों का कोई स्थान क्यों नही है? हरीशचन्द्र पाण्डे अपनी कविता में वस्तुस्थिति का संपूर्ण चित्रण करते हैं, पूरी घटना को ईमानदारी से चित्रित करते हैं और अंत में उसके संवेदना सूत्र को दिखाते हैं। विकृत पूंजीवाद का यह अमानवीय चेहरा समाज से छिपा नहीं है। लेकिन समाज पूरी तरह से पूंजीवाद की गिरफ्त में है। पूंजीवाद ने समाज की परिभाषा ही बदल कर रख दी है। पूंजीवाद की नज़र में समाज उसको कहते हैं जिसके पास क्रेडिट कार्ड हो, विभिन्न कंपनियों में शेयर हो, आधुनिक जीवन शैली हो। पूंजीवादी समाज सड़क किनारे खड़े होकर चाय पीने वाला समाज नहीं है। पूंजीवादी समाज होटलों, रेस्तराओं में बैठकर कॉफी की चुस्कियाँ लेने वाला या कोल्ड-ड्रिंक के घूंट पर घूंट गटकने वाला समाज है। ऐसे समाज को निम्नवर्गीय या मध्यमवर्गीय समाज की संवेदनाओं से क्या सरोकार। लेकिन निम्नवर्गीय व निम्नमध्यवर्गीय समाज में भी वही दिल धड़कता है। कवि पूंजीवादी उच्चवर्गीय समाज के बरक्स निमनवर्गीय समाज के जीवन-राग में संवेदनाओं के तत्व ज्यादा ही पाता है।



                      हरीशचन्द्र पाण्डे की कविताओं में एक जीते-जागते मनुष्य की कामनाओं का चित्रण है। अधूरा मकानकविता में वे मनुष्य की कामना का यथार्थ चित्रण करते हैं। अधूरे मकान को दो कमरों का बनना था लेकिन एक कमरे का काम फिलहाल बंद पड़ा है। हरीशचन्द्र पाण्डे की कविताओं में जो होना था उसके अभी तक न हो पाने की वेदना प्रधान है। कई कविताओं में यह भाव देखने को मिलता है। अधूरा मकानमें मकान कुल दो कमरों का बनना था। छोटा कमरा किसी तरह बन गया है। बड़ा कमरा नहीं बन पा रहा है। दो कमरों का पूरा मकान न बन पाने की स्थिति से यह कविता बनी है -



इसे दो कमरों का मकान बनना था



फिलहाल एक कमरे के बाद काम बन्द है



ग       ग       ग       ग       ग       ग



जो कमरा बना है वह भी पूरी तरह बना नहीं है अभी



दीवारों का रिसाव



पहली बरसात में ही बना गई है अनींद का ताल



प्लास्टर से ईंटों का शरीर नहीं ढंका जा सका है।6 ( अधूरा मकान’)



                     दूसरा कमरा बनाने का प्रयास जारी है। अगर प्रयास न होता तो इच्छा की तीव्रता का द्वंद्व न होता। जो तनख्वाह मिलती है उसी में से कुछ बचाकर मकान बनवाया जाता है। पूरा मकान बनवाने का इच्छुक मामूली नौकरीवाला होगा। उसे रेत, सरिया, बिखरा हुआ सामान नहीं बल्कि महीने की पहली तारीख दिखलाई पड़ती है। यह अधूरा मकानएक साथ ही कई अधूरेपन को व्यक्त करता है। आज़ादी के बाद के भारत को दर्शाता यह अधूरा मकानसमकालीन यथार्थ की सच्ची प्रस्तुति है। हरीशचन्द्र पाण्डे कविता की सफलता उसकी संप्रेषणीयता में ही देखते हैं। हरीशचन्द्र पाण्डे की कविता समकालीन साधारण मानव से सरोकार रखती है। वे साधारण मानव की आशा-आकांक्षा, पीड़ा, राग-विराग को अपनी कविताओं में अभिव्यक्त करते हैं। माँशीर्षक कविता में, पेड़ के चारों  तरफ लिपटी छाल के माध्यम से वे स्त्री की सहनशीलता, श्रम व त्याग का चित्रण करते हैं -



पिता पेड़ हैं



हम शाखाएँ हैं उनकी



माँ



छाल की तरह चिपकी हुई है पूरे पेड़ पर



जब भी चली है कुल्हाड़ी



पेड़ या उसकी शाखाओं पर



माँ ही गिरी है सबसे पहले



टुकड़े टुकड़े होकर।7. (माँ)



                     पेड़ के कटने का दुख सबसे पहले पेड़ की छाल ही सहती है। इस संघर्षपूर्ण समाज में स्त्री के संघर्ष व उसके त्याग को यह कविता पूरे मर्म के साथ दिखाती है। पेड़ पिता का प्रतीक है। पेड़ रूपी पिता के कटने से पहले माँ रूपी छाल कटती है। औरतशीर्षक कविता में हरीशचन्द्र पाण्डे समाज में स्त्री की दशा का कुछ यूँ चित्रण करते हैं -



रस्सी सी बटी हुई औरत



औरत थामे है



कुएँ के जगत पर



रस्सी



रस्सी जगह-जगह से टूटी



औरत सी।8 (औरत)



                       हरीशचन्द्र पाण्डे की कविताएँ जीवन के ऐसे अनुभवों की ही आँच में तपकर बनी हैं। हरीशचन्द्र पाण्डे की कविताएँ महज कविताई करने के इरादे नहीं रखतीं। वे जीवन के विविध पक्षों का सच्चा एवं यथार्थ रूप प्रस्तुत करती हैं। प्रेम, प्रकृति, समाज, रोजमर्रा की ज़रूरतें सभी विषयों पर लिखी उनकी कविताओं में आशा-निराशा, राग-विराग, आकांक्षा का शाश्वत भाव अपने मूल रूप में सन्निहित है। समाज को समाज बनाने के लिए, प्राणी को प्राणी बनाने के लिए साहित्य ने हमेशा अपनी भूमिका का निर्वाह किया है। मानवता के नाम पर आज लोग एक दूसरे को ठगते हैं। भ्रष्टाचार, मूल्यों का पतन, धार्मिक संकीर्णता, जाति-पाँति, छुआछूत का बोलबाला हो गया है। भाई-चारे की भावना विलुप्त हो गई है। स्त्री को सम्मान की नज़रों से नहीं देखा जा रहा है। यह समय दरअसल मानवता के पतन का समय है। मनुष्य, मनुष्य न होकर मशीन हो गया है... मशीन जिसमें संवेदना नहीं होती । जाति-पाँति, ऊँच-नीच, छुआछूत, धार्मिक संकीर्णता जैसे विषयों का साहित्य ने सदैव प्रतिरोध किया है। यह प्रतिरोध निरंतर जारी है। हरीशचन्द्र पाण्डे की कविताएं साहित्य की इस कसौटी पर खरी उतरती हैं। हरीशचन्द्र पाण्डे ने कविता को सचमुच देखा-देखी की लोकपरकता से निजात दिलाई है। हरीशचन्द्र पाण्डे ठहरकर वस्तुओं का अवलोकन करते हैं और उन्हें विशेषीकृत अर्थ देते हैं। उनकी कविताओं में श्रम के सौंदर्य का महत्त्व स्पष्ट ही देखा जा सकता है।


निष्कर्ष:

हरीशचन्द्र  पांडे की कविता समाज के अन्यायों का प्रतिरोध करने और समाज को एक बेहतर दिशा में  अग्रसर करने की प्रगतिशील शक्ति का जीवंत साक्ष्य  है। अपनी बहुमुखी काव्यात्मक अभिव्यक्ति के माध्यम से, हरीशचन्द्र  पांडे   समकालीन मानवीय जीवन की विविध पहलुओं  पर प्रकाश डालते हैं और हाशिए पर रहने वाले वर्गों  और श्रमिकों द्वारा सामना की जाने वाली वास्तविकताओं को उजागर करते हैं। उनके छंद मानवीय संघर्ष की लय के साथ स्पंदित होते हैं, सामाजिक पतन के सार और मानवीय आत्मा के लचीलेपन को दर्शाते हैं।असमानता, भ्रष्टाचार और मानवता की हानि से त्रस्त इस समाज  में, हरीशचन्द्र  पांडे की कविता आशा की किरण के रूप में कार्य करती है| बहहराल, यह कहा जा सकता है कि  हरीशचन्द्र  पांडे की कविता समाज में श्रम के महत्व को प्रतिपादित करती है| एक ऐसे समाज के परिकल्पना की ओर हमें प्रेरित करती है जहाँ जीवन मूल्य यथार्थ की धरातल पर पनपती और संवर्धित होती है|


संदर्भ-सूची

  1. https://www.hindwi.org/, किसान और आत्महत्या_/_हरीशचन्द्र_पाण्डे

  2. http://kavitakosh.org/ , लौह-यात्रा_/_हरीशचन्द्र_पाण्डे

  3. http://kavitakosh.org/ , कार्य_ही_पूजा_है_/_हरीशचन्द्र_पाण्डे

  4. https://www.hindwi.org/, लद्दू घोड़े_/_हरीशचंद्र पांडे

  5. https://www.hindwi.org/, लद्दू घोड़े_/_हरीशचंद्र पांडे

  6. https://www.hindwi.org/, अधूरा मकान_/_हरीशचंद्र पांडे

  7. https://www.hindwi.org/, माँ_/ हरीशचन्द्र_पाण्डे

  8. www.hindwi.org, औरत _/ हरीशचन्द्र_पाण्डे


सहायक ग्रन्थ सूची

  1. नवल, नंदकिशोर, आधुनिक हिन्दी कविता का इतिहास. नई दिल्ली: वाणी प्रकाशन,2023

  2. चतुर्वेदी,रामस्वरूप, आधुनिक कविता यात्रा, नई दिल्ली: लोक भारती प्रकाशन, 2019

  3. पाण्डे, हरीशचन्द्र.कछार कथा.नई दिल्ली: राजकमल प्रकाशन,2023

  4. सं, श्रीवास्तव,परमानन्द. समकालीन हिंदी कविता.नई दिल्ली: साहित्य अकादमी,2023

  5. तिवारी,विश्वनाथ प्रसाद.समकालीन हिन्दी कविता.नई दिल्ली: राजकमल प्रकाशन,2010

  6. तिवारी, अजय.उत्तर आधुनिकता, कुलीनतावाद और समकालीन कविता.नई दिल्ली: नयाब किताब प्रकाशन,2015


Published

कामेंग ई-पत्रिका

www.kameng.in

ISSN : 3048-9040 (Online)

Author

Dr. Aniruddha Kumar

Assistant Professor

Department of Hindi

Assam University, Diphu Campus

aniruddha.au@gmail.com

How to Cite
कुमार, डॉ. अनिरुद्ध . “श्रम का सौन्दर्य : हरीशचन्द्र पाण्डे की कविताएँ.” कामेंग ई- पत्रिका, vol. 1, no. 1, पृ. 82–88.
Issue

Volume 1|Issue 1| Edition 1 | Peer reviewed Journal | July-December, 2024 | kameng.in

Section

शोधालेख

LICENSE

Copyright (c) 2025 कामेंगई-पत्रिका

This work is licensed under a Creative Commons Attribution-Share Alike 4.0 International License.

Recent Comments

श्रम का सौन्दर्य : हरीशचन्द्र पाण्डे की कविताएँ ×
Register / Login to Leave a comment

Contact

Editorial Office

Kameng E-Journal

Napam, Tezpur(Sonitpur)-784028 , Assam

www.kameng.in

kameng.ejournal@gmail.com

Published by

डॉ. अंजु लता

कामेंग प्रकाशन समूह

Kameng.ejournal@gmail.com

Mobile : 8876083066

नपाम,तेजपुर,शोणितपुर,असम,-784028


Dr ANJU LATA

Kameng prakaashan Samuh

Kameng.ejournal@gmail.com

Mobile : 8876083066

Napam, Tezpur,Sonitpur, Assam-784028

8876083066/8135073278


Quick Link

Useful Link