शोधालेख
संक्षिप्त रूप में कामरूपी और गोवालपरीया उपभाषा का तुलनात्मक विश्लेषण
-डॉ॰ प्रवीण बरा
पूर्व शोधार्थी
हिंदी विभाग,मणिपुर विश्वविद्यालय
सारांश:
असम एक बहुभाषी प्रदेश है। यहाँ सौ से भी अधिक भाषाएँ एवं उपभाषाएँ विभिन्न जाति-जनजाति द्वारा बोली जाती हैं। प्रत्येक जाति-जनजातियों की अपनी-अपनी भाषाएँ होने के बावजूद भी वे साधारणतः संपर्क भाषा के रूप में ‘असमिया’ भाषा का प्रयोग करते हैं। असमिया असम राज्य की प्रधान एवं मुख्य भाषा है। प्रस्तुत आलेख में असम प्रदेश की इसी असमिया भाषा के दो उपभाषाएँ, ‘कामरूपी’ एवं ‘गोवालपरीया’ का विवेचन किया गया है। इन दोनों उपभाषाओं के संक्षिप्त विशेषताओं को देखे हुए उनके बीच पाए जानेवाले सम्यक अंतर का विश्लेषण किया गया है। कामरूपी उपभाषा और गोवालपरीया उपभाषा में यह अंतर शब्द-अर्थ, वाक्य-विन्यास, ध्वनि, रूप आदि विभिन्न क्षेत्र के आधार पर किया जा सकता है। क्षेत्रफल के हिसाब से असम प्रदेश को तीन बड़े भागों में बांटा गया है, जैसे- ऊपरी असम, मध्य असम और निम्न असम। तथा उपर्युक्त दोनों उपभाषाएँ निम्न असम में प्रचलित प्रधान एवं मुख्य उपभाषाएँ हैं।
बीज शब्द:
स्वराघात शब्द, उपभाषा, ध्वनि-तात्विक, रूप तात्विक, ध्वनि-तात्विक
मूल विषय:
कामरूपी उपभाषा निम्न असम के अंतर्गत कामरूप जिला में प्रचलित एक महत्वपूर्ण उपभाषा है। डॉ॰ उपेंद्रनाथ गोस्वामी जी ने कामरूपी उपभाषा के संबंध में विस्तृत विवेचन किया है। उनके ‘A Study on Kamrupi : A dialect of Assamese’ पुस्तक इस संदर्भ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। [1] डॉ॰ गोस्वामी जी ने कामरूपी उपभाषा को प्रधानतः पश्चिमी, मध्य और दक्षिणी तीन क्षेत्रीय उपभागों में बांटा हैं। गोस्वामी जी के अनुसार कामरूपी उपभाषा का पश्चिमी क्षेत्र के अंतर्गत बरपेटा, सुंदरीदिया, पाटबाउसी, भवानीपुर आदि आते हैं तथा नलबारी जिला के चारों ओर स्थित अंचल मध्य कामरूपी के अंतर्गत आते हैं और दक्षिणी कामरूपी के अंतर्गत पलाशबारी, छयगाँव, बको आदि आते हैं। [2] भाषाविद डॉ॰ रमेश पाठक जी ने कामरूपी उपभाषा के अंतर्गत पाँच क्षेत्रीय रूप बताया है, जैसे- बरपेटीया, नलबरीया, पातिदरंगीया, छयगयां और गुवाहाटीया। [3] भाषाविद बिभा भराली जी ने अपनी पुस्तक ‘कामरूपी उपभाषा : एटि अध्ययन’ में कामरूपी उपभाषा को दो प्रधान क्षेत्र में बांटा है।
- उत्तर कामरूपी और
- दक्षिण कामरूपी। [4]
बिभा भराली जी ने उत्तर कामरूपी और दक्षिण कामरूपी के अंतर्गत दो-दो उपवर्गीय क्षेत्रों को दिखाया है। जैसे- उत्तर कामरूपी के अंतर्गत उत्तर-पूर्वी कामरूपी और उत्तर-पश्चिमी कामरूपी। ठीक इसी तरह दक्षिण कामरूप के अंतर्गत दक्षिण-पूर्वी और दक्षिण-पश्चिमी आदि उपभागों को दिखने का प्रयास किया है।
अतः कामरूपी उपभाषा के अंतर्गत अनेक उपभाग विद्यमान हैं। अर्थात समग्र कामरूप में कामरूपी उपभाषा एकरूपता से प्रयोग नहीं होते हैं। विभिन्न क्षेत्र के अनुसार कामरूपी उपभाषा की भाषित विशेषताएँ कही न कही पृथक दृष्टिगोचर होते है। इस संदर्भ में भाषाविद दीपांकर मरल ने उल्लेख किया है कि- “Kamrupi dialect of Assamese does not mean that only one dialect is spoken in Kamrup nor does it mean that there is no variation in Kamrupi dialect, but it means that the dialects of Assamese in the Kamrup region share certain distinguishing characteristic features which mark it different from other regional dialects of Assamese.” [5] तथा कामरूपी उपभाषा में अंतर्निहित कुछ ख़ास भाषा-तात्विक विशेषताओं को निम्न रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।
- कामरूपी उपभाषा में शाब्दिक स्वराघात शब्दों के आदि वर्ण में होते हैं, जबकि मानक असमिया भाषा के कथित रूप में स्वराघात उपांत्य (अंतिम से पहले का) वर्ण में होते हैं। इसके फलस्वरूप शब्दों के मध्य स्थान में स्थित स्वर प्रायः लुप्त होकर संयुक्त व्यंजन की सृष्टि होती है। जैसे- मानक असमिया के ‘भोमोरा’ (भौंरा) > कामरूपी उपभाषा में ‘भोम्रा’ उच्चरित होते हैं। इसी तरह ‘निगोनी’ (चूहा) > ‘निंग्नि’।
- कामरूपी उपभाषा के शब्दों में दो ‘आ’ ध्वनि एक साथ उच्चारण हो सकते हैं, जबकि मानक असमिया भाषा में दो ‘आ’ ध्वनि एक साथ होने से प्रथम ‘आ’ ध्वनि ‘अ’ या ‘ए’ ध्वनि में परिवर्तित होकर उच्चरित होते हैं। जैसे- मानक असमिया के रजा (राजा), चका (पहिया) आदि शब्द का कामरूपी उपभाषा में क्रमशः राजा, चाका आदि उच्चरित होते हैं।
- कामरूपी उपभाषा में दो संयुक्त-स्वर के उपरांत तीन स्वरों का संयुक्त रूप भी शब्दों में प्रयोग होते हैं। जैसे- मानक असमिया- ‘बामुनिया’ (ब्राह्मण)> ‘बाउइम्ना’, ‘केरेलुवा’ (गोजर, एक प्रकार का कनखजुरा) > ‘केउइला’ आदि।
- मानक असमिया भाषा में एक से अधिक वर्ण युक्त शब्दों के अंत में स्थित ‘ऐ’ और ‘औ’ ध्वनि कामरूपी में क्रमशः ‘ए’ और ‘ओ’ रूप में उच्चरित होते हैं। उदाहरण- मानक असमिया- ‘भातौ’ (तोता) > ‘भातो’, ‘काबौ’ (प्रार्थना) > ‘काबो’, ‘बांधै’ (दोस्त) > ‘बांधे’ आदि।
- मानक असमिया के दो या तीन वर्ण युक्त शब्दों के बीच में स्थित ‘अ’ ध्वनि कामरूपी उपभाषा में ‘आ’ तथा आदि स्थान में ‘इ’ होने से बीच के ‘अ’ कभी-कभी ‘ए’ रूप में उच्चरित होते हैं। जैसे- ‘मरम’ (प्यार) > ‘मराम’, ‘तपत’ (गरम) > ‘तपात’, ‘दीघल’ (लंबी) > ‘दिघेल’, ‘पागल’ > ‘पागेल’।
- दो वर्ण युक्त शब्दों के आदि स्थान में ‘ओ’ और अंत में ‘अ’ और ‘आ’ होने से कामरूपी उपभाषा में आदि स्थान ‘अ’ में परिवर्तित होकर उच्चरित होते हैं। जैसे- ‘ठोंगा’ (झोला) > ‘थंगा’, ‘मोना’ (झोला) > ‘मना’, ‘तोर’ (तेरा) > ‘तर’, ‘मोर’ (मेरा) > ‘मर’ आदि।
मानक भाषा के प्रायः अल्पप्राण ध्वनि कामरूपी में महाप्राण रूप में उच्चरित होते हैं। उदाहरण- ‘भोक’ (भूख) > ‘भूख/भोख/भख’, ‘शुकान’ (सूखा हुआ) > ‘सुखान/सुखना/सुखुना’ आदि।
गोवालपरीया उपभाषा:
निम्न असम के दो प्रधान उपभाषाओं में कामरूपी के पश्चात गोवालपरीया उपभाषा भी उल्लेखनीय है। गोवालपरीया उपभाषा के अंतर्गत धुबुरी, सत्रशाल, दक्षिण शालमारा, बोंगाईगांव, कोकराझार, गौरीपुर, अभयापुरी, गोवालपारा, दूधनोई, धूपधारा, बिजनी, आदि क्षेत्र आते हैं। ‘गोवालपरीया’ नाम को लेकर विद्वानों में मतभेद देखा गया है। ग्रीयर्सन और डॉ॰ वाणीकांत काकती जी ने इसे ‘राजवंशी’ कहा है, डॉ॰ उपेंद्रनाथ गोस्वामी जी ने इसे ‘देशीभाषा’, सुनीति कुमार चेटर्जी ने इसे ‘बँगला के उत्तर के अंचल की उपभाषा’, सुकुमार सेन जी ने इसे ‘उत्तरबंगीय उपभाषा’ तथा कोई-कोई विद्वान इसे ‘कमतापूरी’ आदि नामों से अभिहित किया है। ग्रीयर्सन के भाषा में “When we cross the river (Brahmaputra) coming from Dhaka, we met a well-marked speech in Rangpur and the districts to its north and east. It is called Rajbangshi, and while undoubtedly belonging to the eastern branch, has still points of difference which lead us to class it as a separate dialect.” [6] ग्रीयर्सन जी के अनुसार ही डॉ॰ वाणीकांत काकती जी ने उल्लेख किया कि- “The spoken dialects of the Goalpara district seem to have been greatly contaminated with the admixtures of the Rajbangshi dialect-the dialect that was evolved under the domination of the Koch Kinggs of Koch-Bihar, whose descendants ruled over Goalpara and continguaus portions of Kamrup.” [7]
गोवालपरीया उपभाषा के अंतर्गत विद्वानों ने कुछ क्षेत्रीय उपभागों की उपस्थिति के बारे में उल्लेख किया है। डॉ॰ उपेंद्रनाथ गोस्वामी जी गोवालपरीया उपभाषा को पश्चिमी गोवालपरीया और पूर्वी गोवालपरीया नाम से दो प्रधान उपभागों में विभाजित किया है। डॉ॰ रमेश पाठक जी ने गोवालपरीया उपभाषा को ब्रह्मपुत्र नद के आधार पर उत्तर तट और दक्षिणी तट दो भागों में बांटा है तथा इन दो भागों के अंतर्गत भी और दो-दो क्षेत्रीय उपभागों में विभाजित किया है। जैसे- उत्तर तट के अंतर्गत पूर्वी भाग (बासुगाँव, बोंगाईगाँव, बिजनी) और पश्चिमी भाग (गौरीपुर, धुबुरी, सत्रशाल) तथा दक्षिणी तट के अंतर्गत भी पूर्वी भाग (दूधनोई, लक्षीपूर) और पश्चिमी भाग (दक्षिण शालमारा, मानकाछार) आदि में वर्गीकृत किया है। [8] डॉ॰ उपेन राभा हाकाचाम जी के पुस्तक ‘असमिया आरू असमर भाषा-उपभाषा’ में गोवालपरीया उपभाषा के अन्य कुछ क्षेत्रीय उपभागों का नाम भी उल्लेख किया है, जैसे- घुल्लीया, चरुवा, झारुवा, नामनिया, बाउसीया, हाबराघाटीया, बारहाजारीया आदि। कोई-कोई विद्वानों ने गोवालपरीया उपभाषा को क्षेत्रीय विभाजन के विपरीत भाषा-समुदायों के आधार पर बांटना उचित माना है।
गोवालपरीया उपभाषा में अंतर्निहित कुछ भाषित विशेषताएँ निम्न प्रकार देखा जा सकता है-
- गोवालपरीया उपभाषा में शाब्दिक स्वराघात (शब्द के उच्चारण के समय किसी व्यंजन या स्वर पर अधिक ज़ोर देना) शब्दों के आदि स्थान में होता है। जबकि मानक असमिया भाषा में स्वराघात उपांत्य वर्ण में होते हैं। जैसे- मानक असमिया भाषा के ‘चेपेटा’ (सपाट, चपटा), ‘कोमोरा’ ( ककड़ी) आदि का उच्चारण गोवालपरीया उपभाषा में क्रमशः ‘चेप्टा’, ‘कुम्रा’ होते हैं।
- गोवालपरीया उपभाषा के शब्दों में दो ‘आ’ ध्वनि एक साथ उच्चारण हो सकते हैं, अर्थात ‘ओ’ के स्थान पर ‘आ’ हो जाता है। जैसे- मानक असमिया के ‘कोना’ (काना), ‘कोला’ (काला) आदि शब्द गोवालपरीया में ‘काना’, ‘काला’ आदि जैसे उच्चरित होते हैं।
- गोवालपरीया उपभाषा में शब्दों के आदि वर्ण में स्थित ‘औ’ ध्वनि ‘ऐ’ ध्वनि में परिवर्तित हो जाते हैं, जैसे- गौरव > गैरव, सौरभ > सैरभ आदि।
- दो वर्णयुक्त शब्दों के अंत में ‘आ’ ध्वनि मौजूद होने से गोवालपरीया उपभाषा में शब्दों के उपांत्य स्थान में ‘इ’ या ‘य’ ध्वनि का योग देखा जाता है, जैसे- ‘बेया’ (बुरा) > ‘बेइया/बेयया’।
- किसी शब्दों के आदि व्यंजन में ‘र’ ध्वनि संयुक्त होने से गोवालपरीया उपभाषा में प्रायः वह शब्द सरलीकृत होकर उच्चरित होते हैं, जैसे- ‘प्रथम’ > ‘परथम’, ‘प्रकाश’ > ‘परकाश’ आदि।
- मानक असमिया भाषा में व्यवहृत स्थान वाचक सर्वनाम जैसे- ‘इयात’, ‘तात’, ‘क’त’ (यहाँ, वहाँ, कहाँ) आदि रूपों का गोवालपरीया उपभाषा में क्रमशः ‘एटि’, ‘उति’, ‘कुटि’ आदि उच्चरित होते हैं।
मानक असमिया भाषा के बहुवचन वाचक प्रत्यय गोवालपरीया उपभाषा में सम्पूर्ण पृथक रूप में प्रयोग होते हैं, जैसे- गुला/गुले- ‘मानसीगुला’ (मानक असमिया में- मानुहबोर; हिंदी अर्थ- मनुष्यों), हर/घर- ‘चेंगराहर’ (मानक असमिया ल’राहँत; हिंदी अर्थ लड़कों) आदि।
कामरूपी उपभाषा एवं गोवालपरीया उपभाषा में अंतर:
असम राज्य की प्रधान भाषा ‘असमिया’ विभिन्न उपभाषा, स्थानीय भाषा एवं जनजातीय भाषाओं के समूह है। तथा कामरूपी एवं गोवालपरीय उपभाषा असमिया भाषा के अंतर्गत आनेवाले प्रधान एवं उल्लेखनीय उपभाषा के रूप में प्रतिष्ठित है। ब्रह्मपुत्र नद के दक्षिणी तट पर स्थित ‘डिमरिया’ अंचल से ‘बोको’ अंचल तक एवं उत्तरी तट पर ‘बरपेटा’ से ‘दरंग’ जिला के सीमा तक कामरूपी उपभाषा फैली हुई है। इसी तरह गोवालपरीया उपभाषा निम्न असम के गोवालपारा, धुबुरी, कोकराझार, बोंगाइगाँव, चिरांग आदि जिलाओं में बोली जाती है। निम्न असम में प्रचलित इन दो उपभाषाओं में यथेष्ट प्रभेद दृष्टिगोचर होते हैं। यह अंतर विदेशी आक्रमण के प्रभाव, धर्म धारा, निवास स्थान, सामाजिक वर्ग विभाजन, आर्थिक स्थिति, भौगोलिक स्थिति, राजनैतिक व्यवस्था आदि विभिन्न कारकों के प्रभाव से उत्पन्न हुआ है। प्रस्तुत आलेख में कामरूपी एवं गोवालपरीया उपभाषा के बीच पाए जानेवाले ध्वनि-तात्विक, रूप-तात्विक और शब्द-तात्विक आदि पार्थक्य को विश्लेषण किया गया है।
ध्वनि-तात्विक विश्लेषण:
- कामरूपी उपभाषा में उच्चरित विशिष्ट स्वर-ध्वनि की संख्या आठ (8) हैं- /अ/, /अ’/, /आ/, /इ/, /उ/, /ए/, /ए’/ और /ओ/। अंचल विशेष में कामरूपी उपभाषा के /अ’/ ध्वनि लुप्त होते हैं। तथा गोवालपरीया उपभाषा में उच्चरित स्वर-ध्वनियों की संख्या सात (7) हैं- /अ/, /आ/, /इ/, /उ/, /ए/, /ए’/ और /ओ/। [9]
- कामरूपी उपभाषा में प्रयुक्त विशिष्ट व्यंजन-ध्वनियों की संख्या तेईस (23) हैं- /क/, /ख/, /ग/, /घ/, /ङ/, /च/, /ज/, /त/, /थ/, /द/, /ध/, /न/, /प/, /फ/, /ब/, /भ/, /म/, /र/, /ल/, /व/, /स/, /ह/ और /य/। ध्यान देना आवश्यक है कि कामरूपी उपभाषिक क्षेत्र विशेष में /झ/ ध्वनि का प्रयोग भी देखा जाता है। तथा गोवालपरीया उपभाषा में प्रयुक्त विशिष्ट व्यंजन ध्वनि की संख्या उनतीस (29) हैं- /क/, /ख/, /ग/, /घ/, /ङ/, /च/, /छ/, /ज/, /झ/, /ट/, /ठ/, /ड/, /ढ/, /त/, /थ/, /द/, /ध/, /न/, /प/, /फ/, /ब/, /भ/, /म/, /र/, /ल/, /श/, /स/, /ह/ और /ड़/। रेखांकन किया गया ध्वनि दोनों उपभाषा में परस्पर पृथक है।
- कामरूपी उपभाषा में ‘च’ और ‘झ’ ध्वनि मानक असमिया भाषा की तरह क्रमशः दंत्य ध्वनि /स/ और अल्पप्राण ध्वनि /ज/ के रूप में उच्चरित होते हैं, परंतु गोवालपरीया उपभाषा में /च/ तालव्य ध्वनि के रूप में और /झ/ महाप्राण ध्वनि के रूप में उच्चरित होते हैं।
- कामरूपी उपभाषा में मूर्धन्य ध्वनि और दंत्य ध्वनि के उच्चारण में कोई अंतर परिलक्षित नहीं होता है। जैसे- ‘ट’ और ‘त’ दोनों का उच्चारण दंत्य ही होता है, परंतु गोवालपरीया उपभाषा में ‘ट’ और ‘त’ वर्ण क्रमशः मूर्धन्य ध्वनि और दंत्य ध्वनि के रूप में उच्चरित होते हैं।
- मानक असमिया भाषा के अल्पप्राण ध्वनियाँ कामरूपी एवं गोवालपरीया दोनों उपभाषा में महाप्राण ध्वनि के रूप में उच्चरित होते हैं। परंतु गोवालपरीया उपभाषा में महाप्राण ध्वनि कभी-कभी अल्पप्राण ध्वनि के रूप में प्रयोग होता है। जैसे- ‘कथा > कता’ (बात), ‘बाधा > बादा’ (रोकना)।
रूप-तात्विक विश्लेषण:
- शब्दों में बहुवचन वाचक प्रत्यय के प्रयोग के क्षेत्र में कामरूपी और गोवालपरीया उपभाषा के बीच अंतर देखा गया है। बहुवचन का अर्थ स्पष्ट करने के लिए दोनों उपभाषा में मानक असमिया भाषा से कुछ अलग-अलग प्रत्यय का प्रयोग देखा जाता है। जैसे-
कामरूपी उपभाषा में /-से/, /-माखा/, /-मोखा/, /-सपा/, /-सपरा/, /-हपा/, /-हपरा/, /-खबा/, /-गिला/, /-गिलाक/, /-गिलान/, /-हात/, /-हाना/, /-हामला/, /-हामरा/, /-हुन/, /-आहुन/, /-ठेर/, आदि बहुवचन वाचक प्रत्ययों का योग किया जाता है। जैसे- गरुगिला, सिगिलाक, मामा आहुन, सखीहाना, छागलमाखा, फूलसपा, छोलिहात, कापूर सपरा, मामाठेर, आईसकाल आदि।
गोवालपरीया उपभाषा में /-गुला/, /-गुले/, /-गुलान/, /-गिलान/, /-गिला/, /-गेला/, /-रा/, /-घर/, /-हर/, /-हला/, /-माखा/, /-गिलाक/ आदि बहुवचन वाचक प्रत्ययों का योग किया जाता है। जैसे- मानशिगुलान, चेंगरागुला, माँगुलान, गूरुगुला, मामाहर, घोरागिलान, आमरा, तुमरा, छागोलगुला, मानशिमाखा, गूरुगिलाक आदि।
ध्यान देना आवश्यक है कि कामरूपी उपभाषा में प्रयोग /-से/, /-सपा/, /-आहुन/, /-आहा/, /-हाना/, /-हामरा/, /-हात/ आदि प्रत्यय का प्रयोग गोवालपरीया उपभाषा में नहीं है। इसी तरह गोवालपरीया उपभाषा में प्रयोग /-रा/, /-घर/, /-हर/, /-हला/ आदि प्रत्यय कामरूपी उपभाषा में नहीं है।
- कामरूपी और गोवालपरीया उपभाषा में प्रयुक्त निर्दिष्ट वाचक प्रत्ययों के रूप में भी अंतर दृष्टिगोचर होते हैं। निम्नलिखित सारणी के माध्यम से यह स्पष्ट रूप में देखा जा सकता है-
कामरूपी उपभाषा | गोवालपरीया उपभाषा |
-टु: मानहुटु -थुक/-थक: तामुलथुक/थक -खिनि: माचखिनि
-मुठा: चाउलमुठा -चाक्ला: आमचाक्ला -टुपा: पानीटुपा -दखर/-दखरा: तियाहदखर/दखरा -आखा: कलआखा | -टा: मानुशटा -बादा: तामुलबादा -कोना: एइकोना -गुटिक: मासगुटिक -मुटा: चाउलमुटा चाका: आमचाका -टुका: पानीटुका -चिर: शेमाचिर -हाता: कलहाता |
- गोवालपरीया उपभाषा में पुल्लिंग वाचक शब्द और स्त्रीलिंग वाचक शब्द का अर्थ प्रकाश कराने हेतु दो-दो बार लिंग का प्रयोग किया हुआ देखा जाता है। जैसे- बुरार बेटा, बुरीर बेटी आदि। परंतु कामरूपी उपभाषा में यह विशेषता विद्यमान नहीं है।
- कामरूपी उपभाषा में वचन के अनुसार क्रिया रूपों का कोई परिवर्तन नहीं होते हैं। किंतु गोवालपरीया उपभाषा में वचन के अनुसार क्रिया रूपों का परिवर्तन होता हुआ देखा जाता है। जैसे- मुइ खांग (मैं खाता हूँ), आम्रा खाइ (हम खाते हैं) आदि।
- कामरूपी और गोवालपरीया उपभाषा में प्रयुक्त सर्वनामों के रूपों में भी कुछ अंतर देखा जाता है। जैसे-
पुरुष
कामरूपी
गोवालपरीया
प्रथम पुरुष
द्वितीय पुरुष
तृतीय पुरुष
एकवचन बहुवचन
मइ आमि
तइ तुहून/तहाँत/तंहते
तुमि तुमि आहुन/तुहना
आप्नि/आपुनि आपोनालोक/सकल
सि (पुं) ताहात
ताइ (स्त्री) ताइहात/तुहून
तेउ तेहात/ताँह्ना
एकवचन बहुवचन
मुइ आमरा
तुइ/तोमरा तूम्रा/तुम्रागुला
उनि/उआइ उम्रा/उमिरा/उनारा
- कामरूपी एवं गोवालपरीया उपभाषा में प्रयोग क्रिया विशेषणों के अलग-अलग रूप देखा गया है। जैसे-
कामरूपी | गोवालपरीया | |
कालवाचक: एतिया (अब) तेतिया (तब) केतिया (कब) स्थानवाचक: त’लै (वहाँ) ज’लै (जहाँ) क’लै (कहाँ) परिमाण: इमान (इतना) जिमान (जितना) सिमान (उतना) किमान (कितना) लक्षणवाचक: एनेकै (ऐसे) तेनेकै (वैसे) जेनेकै (जैसे) केनेकै (कैसे) | इत्ते/इता/इथान तेइते/तेइता/तेथान केइता/केथान तात/सहाय/सेफ्ले जोत/जहाय कोक/कोत/कँहाय इमान/ए’नाम जिमान/जे’नाम तिमान/ते’नाम/सिमान किमान/के’नाम ए’नाइके/एंके सेनाइ/सेंके/तेंके जे’नाइके/जेंके के’नाइके/केंके/ केनाइकोरि/केंकोरि | ए’खन/ए’ला तखन/तेला/ओला/अ’इ समय कखन/कुनबेला/कुनसमय तात/ओटि/ओइठे/अ’यदिके ज’त/जेति/जिदिके कुटि/क’त/कुनदिके इमान/ए’त्तु जिमान/ज’त्तु तिमान/अ’त्तु किमान/क’त्तु एनका/एंका/एमन/एमनकोरि तेन्का/तेंका/अंका/शे’मन जे’न्का/जेंका/जे’मन/जे’मनकोरि केन्का/केंका/के’मन/के’मनकोरि |
शब्द-तात्विक विश्लेषण:
कामरूपी एवं गोवालपरीया दोनों उपभाषा में उपर्युक्त प्रभेदों के उपरांत भी वाक्य में शब्द-चयन प्रक्रिया, बोलने का लहज़ा आदि के क्षेत्र में अंतर परिलक्षित होते हैं। उदाहरणस्वरूप निम्नलिखित शब्दों के सारणी को देख सकते हैं-
मानक असमिया (हिंदी) | कामरूपी उपभाषा | गोवालपरीया उपभाषा |
जोँवाइ (दामाद) भनी (बहन) म’ह (भैंस) छागली (बकरी) काउरी (कौआ) पइताचुरा (तिलचट्टा) मधुरीआम (अमरूद) अमिता (पपीता) पुवा (सुबह) नियर (कोहरा/कुहासा) बरषुण (बारिश) आलही (मेहमान) चारि (चार) ल’रा (लड़का) छोवाली (लड़की) | जँवे/जङे/जाउङे बैनी/बनी मुइह/मुह छागल/छागाल काउर तेलपका/तेलभौका सोइफ्राम/स’फ्रेम मइद्फ़ल/मप्फेल पुवा नियार बइरहान/ब’हेन कुर्मा/अतिथि चारि आपा आपि | जामाइ बैन भैश सागल काओवा तेलुम शुप्री/शुपारि मोधूफल/तोरमूल बिहान/शकाल शित झोरि/पानी शागाइ चाइर चेंगरा चेंगरी आदि। |
निष्कर्ष:
उपभाषा; भाषा का एक अभिन्न अंग है, जो मूल भाषा के परिनिष्ठित रूप से ध्वनि, वाक्य-संरचना, अर्थ, शब्द-समूह, उच्चारण आदि की दृष्टि से पृथक होते हैं। यह निश्चित रूप में कहा जा सकता है कि सामाजिक, राजनीतिक, ऐतिहासिक, भौगोलिक आदि विभिन्न कारणों के प्रभाव से एक निर्दिष्ट क्षेत्र में उपभाषा की सृष्टि होती है। असमिया भाषा के उपभाषाओं का निर्माण भी सामाजिक, राजनीतिक, ऐतिहासिक एवं भौगोलिक कारणों के प्रभाव से हुआ है। जर्ज ग्रीयर्सन से लेकर डॉ॰ दीपांकर मरल आदि तक के भाषाविदों ने असमिया भाषा के उपभाषाओं के संबंध में अध्ययन-विश्लेषण प्रस्तुत किया है। इस संदर्भ में डॉ॰ उपेंद्रनाथ गोस्वामी जी का नाम उल्लेखनीय है, जिन्होंने सर्वप्रथम असमिया भाषा के उपभाषाओं का वैज्ञानिक अध्ययन को गति देने का महत्वपूर्ण कार्य संपन्न किया।
निम्न-असम (नामनि-असम) में प्रचलित कामरूपी उपभाषा एवं गोवालपरीया उपभाषा के बीच पाए जानेवाले उपर्युक्त प्रभेदों के कारण ही यहाँ के भाषिक-विशेषता बहुत ख़ास हो जाती है। दोनों उपभाषाएँ मानक असमिया भाषा से यथेष्ट दूरी पर जा बसे हैं। मानक असमिया भाषा बोलने और समझने वाले व्यक्ति इन दो उपभाषाओं को अति सहज ही समझ पाना उनके लिए एक कठिन कार्य है। एक ध्यान देने योग्य बात यह है कि इन दोनों उपभाषाओं में लोककथाएँ एवं लोकगीत आदि की प्रधानता अधिक है। परंतु दोनों ही उपभाषा द्वारा लेखन परंपरा में मानक असमिया भाषा को ही ग्रहण किया है।
संदर्भ-सूची
[1].बिभा भराली, “कामरूपी उपभाषा : एक अध्ययन” पूर्वायन प्रकाशन (2022) पृष्ठ संख्या : 15
[2]. बिभा भराली, “कामरूपी उपभाषा : एक अध्ययन” पूर्वायन प्रकाशन (2022) पृष्ठ संख्या : 15
[3]. डॉ॰ रमेश पाठक, “उपभाषा-विज्ञानर भूमिका” अशोक बूक स्टॉल प्रकाशन (2019) पृष्ठ संख्या : 110
[4]. बिभा भराली, “कामरूपी उपभाषा : एक अध्ययन” पूर्वायन प्रकाशन (2022) पृष्ठ संख्या : 19
[5]. डॉ॰ पराग कुमार भट्टाचार्य (संपदना), “उपभाषा विज्ञान आरू असमिया उपभाषा” कृष्णकांत संदिकै मुक्त विश्वविद्यालय प्रकाशन (2018) पृष्ठ संख्या : 38, 39
[6]. डॉ॰ रमेश पाठक, “उपभाषा-विज्ञानर भूमिका” अशोक बूक स्टॉल प्रकाशन (2019) पृष्ठ संख्या : 134
[7]. डॉ॰ रमेश पाठक, “उपभाषा-विज्ञानर भूमिका” अशोक बूक स्टॉल प्रकाशन (2019) पृष्ठ संख्या : 134, 135
[8]. डॉ॰ रमेश पाठक, “उपभाषा-विज्ञानर भूमिका” अशोक बूक स्टॉल प्रकाशन (2019) पृष्ठ संख्या : 137
[9]. डॉ॰ उपेन राभा हाकाचाम, “असमिया आरू असमर भाषा उपभाषा” ज्योति प्रकाशन (2020) पृष्ठ संख्या : 450
सहायक ग्रन्थ सूची
- कलिता, निपम एवं बोरा भृगुतम: 2021, “भाषाविज्ञान आरू असमिया भाषा ” पूर्वायण प्रकाशन-पानबाज़ार गुवाहाटी।
- गोस्वामी, डॉ॰ श्रीगोलकचंद्र: 2015, “असमिया व्याकरणर मौलिक विचार” वीणा लाइब्ररी प्रकाशन, गुवाहाटी।
- गोस्वामी, उपेंद्रनाथ: 2012, “असमिया भाषा आरू उपभाषा” मणि माणिक प्रकाशन, गुवाहाटी।
- पाठक, डॉ॰ रमेश: 2019, “उपभाषा विज्ञानर भूमिका” अशोक बूक स्टॉल प्रकाशन, गुवाहाटी।
- राभा हकाचाम, डॉ॰ उपेन: 2020, “असमिया आरू असमर भाषा-उपभाषा” ज्योति प्रकाशन-पानबाज़ार, गुवाहाटी।
- दास, डॉ॰ विश्वजित एवं बसुमतारी, डॉ॰ फुकन चंद्र: 2022, “असमिया आरू असमर भाषा” आँक-बाँक प्रकाशन, पानबाज़ार, गुवाहाटी।
- पाटगिरि, दीप्ति फुकन: 2015, “असमिया भाषार उपभाषा” गौहाटी विश्वविद्यालय प्रकाशन, गुवाहाटी।
- भराली, बिभा: 2022, “कामरूपी उपभाषा : एटि अध्ययन” पूर्वायण प्रकाशन-पानबाज़ार गुवाहाटी।
- भट्टाचार्य, डॉ॰ पराग कुमार (संपदना): 2018, “उपभाषा विज्ञान आरू असमिया उपभाषा” कृष्णकांत संदिकै मुक्त विश्वविद्यालय प्रकाशन।
- चौधरी, तेजपाल: 2009, “भाषा और भाषाविज्ञान”, विकास प्रकाशन कानपुर।