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ISSN : 3048-9040 (Online)

साहित्यिक पत्रिका

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कामेंग अर्धवार्षिक ई-पत्रिका/सहकर्मी समीक्षा जर्नल/जुलाई - दिसंबर,2024/खण्ड-1/अंक-1

कहानी
ड्रीम गर्ल्

Received: 10 Apr, 2025 | Accepted: 10 Apr, 2025 | Published online: 11 Apr, 2025 | Page No: 1 | URL: 1


प्रो. दिलीप कुमार मेधी
प्रोफेसर
हिंदी विभाग, गुवाहाटी विश्वविद्यालय, असम

"स्नेहिल ।”



“क्या हुआ?”



स्ने- हि  -- - ल!”



"अरे भाई जरा गिन लो, सबलोग आए कि नहीं?”



"मैं क्यों?”



“अरे बाबा! तुम ही तो हो सबकुछ ।"



"अरुणाचल की वह लड़की आई कि नहीं?”



"कौन? जोरम आनिया ताना ?"



“हाँ ।”



“वह आई है। पीछे बैठी हुई है ।"



"हाँ! हाँ ! सबलोग आ गए हैं ।"



"अरे ड्राइवर जी! थोड़ा सा वॉल्यूम बढ़ा दीजिए ।”



"अरे पाइलट जी! थोड़ा आहिस्ते चलाइए । गिर जायेंगे ।”



"अरे गिरोगे तो क्या होगा? थोड़ा संभाल के गिरना ।" हॉ भाई, किसी की गोद में ही गिरना ।" 'अरे नीता ! स्नेहिल को बैठने दो ना । गिर जाएगा ।" 'सीट नहीं है । मैं कहाँ बैठने दूँ ?”



"अरे गोद में बिठा लो ना ।"



हाँ हाँ - हाँ --- हाँ



सबलोग हँस पड़े ।



'तुमलोग भी कैसे बच्चे हो?”



हुआ क्या ?"



"बताओ ना?”



"क्या बताऊँ? सब लड़कियाँ कच्ची हैं ।"



"कितना समय गया चूल्हा जलाने में ।"



"ऐसे नहीं होगा ।”



हॉ भाई ! कुछ तो करना पड़ेगा ।"



"मगर करोगे क्या?”



"ऐसी जगह पर करेंगे भी क्या?”



"किसने बोला था यहाँ आने के लिए?”



"अरे भाई! जंगल में ही तो मंगल होता है ।”



"मंगल का बच्चा चुप रह ।"



"इतना जंगल है, मुझे तो डर लग रहा है।"



"मुझे तो भूख लगी है।"



"अरे भूख की नानी । खाना पकेगा तब ना?”



"पहले तो चूल्हा जलने दो ।"



"सुनीता! ऊपर देखो तो, कौन आ रहा है ?”



"पता नहीं कौन है वह?”



"आदमी या जानवर?”



"डानकान पर्वत आ रहा है क्या?”



"नहीं कोई हनुमान होगा, पर्वत उठाकर लाया होगा ।”



“भूत भी हो सकता है ।"



"मुझे तो डर लग रहा है ।"



“हम लड़कियों को डराने के लिए यहाँ ले आए हो क्या?”



“कोई जंगली आदमी है क्या?”



"टार्जन हो सकता है ।"



“अरे मज़ाक मत कर । डराओ मत ।”



“काल फिल्म का अजय देवगन तो नहीं?”



“अरे! यह तो स्नेहिल है । सर पर लकड़ी का बोझ है ।"



"अरे नीता तुझे कैसे मालूम?”



"नीता को मालूम न होगा, तो किसको होगा?”



“हाँ - - - हाँ



-- हाँ - - - हाँ --- हाँ - - - 1"



सबलोग हँस पड़े ।



'सबको मिला कि नहीं?”



"लगभग सबको मिल गया है ।"



'जो ये बच गए हैं, क्या करोगे?”



"अरे मोटू! खाने की इच्छा है तो सीधे माँगने में क्या हर्ज है ?"



इतना बटर मत लो यार ।”



"अरे खाने दो पेटूवा को ।"



"अरे भूल ही गया ।”



"क्या?”



पाइलट और हेंडीमेन को ब्रेकफास्ट देके आओ ।"



"कुछ ब्रेड रख दो ।”



"अंडे भी कुछ रख दो।”



"किसके लिए नीता?”



स्नेहिल



"नीता नहीं बतायेगी ।”



"किसके लिए होगा? नहीं जानते हो ?"



"मैं तो जानती हूँ।”



"तो बताओ ना?”



“नहीं बताऊँगी? नीता मारेगी ।*



"अरे पगली! कुछ लोग घूमने गए है । उनके लिए ।"



वह तो है । पर नीता ! कुछ में तो एक ऐसा है, जिसके लिए तुम रखना चाहती हो।”



"अरे विनीता! बताओ ना ? वह कौन है ?”



"नहीं । नहीं बताऊँगी । नीता मुझे पीटेगी ।"



"मैं बताऊँ? - काफी दूर खड़ी होकर कविता ने कहा ।”



"बताओ! जल्दी बताओ ।"



"स्ने - हि - - - ल ।”



"हाँ - - - हाँ - हाँ - - - हाँ - - - ।"



सबलोग हँस पड़े



"एक अच्छा गाना लगा दो ना?”



“क्या बुरा है? ठीक ही तो है ।”



"अरे नींद आ जायेगी ।”



“हाँ भाई! एक बढ़िया गाना लगा दो ।”



"क्यों? नाचने का इरादा है ?”



"अरे बाद में नाचना ।”



"पहले यह काम समाप्त करो ।”



“अरे लाड़ली है। उँगली कट जायेगी ।”



“तू ही काट के दिखा?”



"मैं लेकिन प्याज नहीं काटूंगी ।”



“अरे तुम आलू काटो ना ।”



“ऐ! तुम बैंगन काटो ।”



"तुम गाजर काटो ।”



“तुम क्यों लेक्चर दे रहे हो? कुछ तो करो ।”



"हाँ हाँ! तुम मसाला पीसो ।"



"अरे हल्दी कहाँ है?”



"चिल्लाते क्यों हो? वही काली वाली झोली में देखो ।” "अरे देखो ! उसकी उँगली कट गयी ।"



"कितना खून निकल रहा है ।"



"स्नेहिल बहुत दर्द हो रहा है क्या?" "नीता! यह भी कोई पूछने की बात है ?”



"रुको! मैं दुपट्टा फाड़कर बाँध देती हूँ।” “हाँ नीता ! बढ़िया से मरहम पट्टी बाँध दो ।”



"अभी तो दर्द उड़ गया होगा ना स्नेहिल?" "हाँ --- हाँ --- हाँ - - - हाँ - - - ।” सबलोग हँस पड़े ।



चलो ! चलो ! थोड़ा सैर करने जाते हैं ।”



“कहाँ जाओगे?”



"आगे झरना है उसी में ।”



"झरना है? तब तो मैं नहाऊँगा भी ।”



"हाँ, मैं भी नहाऊँगा ।”



"तैरना आता है?”



"नहीं ।”



तो संभालके भाई ।”



"अरे तुमलोग भी साथ में जाओगी न।"



"अरे क्यों नहीं जाएँगे?”



"जाऊँगी । लेकिन डान्स करना पड़ेगा ।"



"बढ़िया गाना भी लगाना पड़ेगा ।"



"आज ब्लू है पानी पानी, दिन है सानी सानी



"हाँ हाँ! यही गाना लगाना होगा ।"



"अरे सरलोग क्या सोचेंगे?”



"ये लोग इधर ही तो बैठे रहेंगे ।"



"अगर देख लिया तो?”



"देख लिया तो लिया! कौन सी बड़ी बात है।"



“सर लोग भी जवानी में कम नहीं थे ।”



स्नेहिल



"क्यों पंकज? उस दिन पार्क में सर को किसी के साथ नहीं देखा था ?"



"गुरु निंदा नहीं करनी चाहिए । क्या तुमने भूला दिया -



गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरुदेवो महेश्वरः ।



गुरु साक्षात परमब्रहम तस्मै श्रीगुरुवै नमः ।।"



“वाह! पंडित जी, वाह !"



"असीम ने ठीक ही कहा है । गुरु-महिमा अपार है ।"



“तुम भी निकले पंडित के बाप!”



"लोग क्यों कहते है पता नहीं कि नारी-महिमा अपार है । दरअसल गुरु-महिमा अपार है । गुरु बगला भगत होता है । स्वभाव से बगला की तरह होता है। अनदेखा करता रहता है, मौका मिलने पर झट से पकड़ लेता है ।"



"अरे बगला से भी बढ़कर है ।”



'मुँह में राम बगल में पुरी भौंकनेवाला होता है। प्यार से बेटा-बेटी तो बोलता है, पर परीक्षा में कम अंक देता है । ढंग से तो सिखाता नहीं, पर परीक्षा खाता को काट-काटकर लाल बना देता है ।"



"ये गुरु-पुराण चर्चा छोड़ दो ।"



"तो क्या करूँ स्नेहिल?”



"कबीर का यह दोहा रटो, और नाचने, गाने, झूमने और तैरने के लिए तैयार हो



जाओ !



गुरु गोविंद दोनों खड़े, काकू लाग्यौ पाय ।



बलिहारी इन गुरु की, जिन दियौ गोविंद बताय ।।



"हाँ.



- हाँ - हाँ --- हाँ --- ।"



सब हँस पड़े ।



"अरे भाई! थोड़ा कमर हिला के तो नाचो ।”



“जाओ तो! गाना चेंज कर दो ।"



"थोड़ा वॉल्यूम भी बढ़ा देना ।"



"तुम भी नाचो ना ।"



"कैसे नाचते हो? हाथों में हाथ डालकर नाच ।"



“शर्म की क्या बात है? मौका दोबारा नहीं आता ।”



"हाँ हाँ खूब नाचो ।”



“ऐ करीम! फोटो खींच ।"



"मेरे हवाट्स ऐप पर फोटो भेज देना ।”



“डिस्को डान्सर कहाँ गया? बुलाओ उसको ।"



"फोटो ले यार । नहीं तो नाचने में मजा नहीं आता ।"



"नीता । डिस्को डान्सर कौन है?”



"नीता नहीं बतायेगी ।"



"तो तुम ही बताओ ।"



"स्ने - - - हि----- ल ।”



सब हँस पड़े ।



“बोलो! और कुछ चाहिए ?"



"थोड़ी-सी सब्जी दो ।"



"मुझे एक रोटी दो ।"



"मुझे थोड़ा-सा चावल चाहिए ।"



"मुझे मछली नहीं मिली ।”



“और कुछ नहीं चाहिए । पेट मर गया ।”



"मर गया या भर गया?”



“एक ही बात है, सिर्फ वर्ण का अंतर है ।”



“थोड़ा पनीर दूँ?”



“मुझे क्यों दे रही हो? मोटू को दो ना ?”



“बार-बार मोटू कहना ठीक नहीं है । उठके चला जाऊंगा ।"



“अरे बाबा खाओ ना! और कुछ नहीं बोलूँगी ।”



“सविता! मोटू का ख्याल रखना । उसे बोलो कि और एक कराहा चावल है।"



"क्या मैं राक्षस हूँ?”



"राक्षस नहीं बोकासुर हो ।”



'अरे भाई, खाते समय कुत्ते को भी चै चै नहीं कहा जाता



"मोटू को मत चिढ़ाओ । यह ठीक नहीं है का एक मुफ 'मोटू के पीछे क्यों सबलोग पड़े हो?”



"इधर तो देख, थाली खाली पड़ी है”। "बहुत मजा आ गया हैं ।”



"उँगली क्यों चाट रहे हो?”



"सचमुच खाना अच्छा बना है ।”



"बेचारे को खाने में कितनी दिक्कत हो रही है ।" "होगी ही! उँगली जो कट गयी ।"



“बुलाओ ना उसको । कम से कम खिला तो दे?”



“किसको? मैं कुछ समझी नहीं ।”



“अरे पगली! मरहम पट्टी बांधनेवाली को बुलाओ ।"



"हाँ - - -हाँ - - हाँ - - - हाँ



-



सबलोग हँस पड़े ।



“अरे क्या हुआ! इतने शांत क्यों हो ?"



“अरे भाई नींद आ रही है ।"



खाना बहुत खाया हूँ । झपकी आ रही है।" “कल दिनभर सो जाना ।”



"कल क्लास नहीं करेंगे ।"



"ठीक है, अब तो नाचो ।”



"सब सीट से खड़े हो जाओ और नाचो ।"



"काश! मैं भी उसकी तरह डांस कर सकता ।"



"अरे मोटू! तू भी डांस करेगा ?"



“पहले पेट को कम करों, उसके बाद डांस सीखो ।”



“एम ए के बाद ऐसा मौका कभी नहीं मिलेगा ।”



"दोस्तो नाचो! खूब नाचो ।"



“स्नेहिल! तुम बीच में नाचो ।”



"वह तो मध्यमणि है ही ।”



“मध्यमणि लड़कियों का, लड़कों का नहीं ।"



“सच कहा तुमने ।"



"सच नहीं कहा ।”



"तो, सच क्या है?”



“सच तो यह है कि वह नीता का ही मध्यमणि है ।"



"हाँ - - - हाँ - - - हाँ - - - हाँ - - - ।"



सबलोग हँस पड़े ।



क्रिंग ---क्रिंग



- क्रिंग -क्रिंग -- -- क्रिंग- -क्रिंग -



"कौन कम्बख्त है? इतनी सुबह भी कोई फोन कर सकता है ?"



क्रिंग• -क्रिंग-- क्रिंग



स्नेहिल



"अरे भाई उठ रहा हूँ । मशीन नहीं हूँ। धीरज तो रख । कितना सुंदर स्वप्न देख रहा था । कितने मजे से पिकनिक मना रहा था । एक से बढ़कर एक दृश्य था । वापसी में कौन क्या नहीं बोल रहा था? कितनी मधर विचित्र बातचीत हो रही थी। कैसे सहपाठीगण मुझे और नीता को लेकर मज़ाक कर रहे थे, सब इसी फोन ने बर्बाद कर डाला ।" -क्रोधभरी नजर से स्नेहिल फोन को देखा । सोचने लगा कैसी है यह जिंदगी ! कैसा है यह संसार ! खाने को जिसको कण भी नहीं मिलता, रात को स्वप्न में राजा बनकर अगाध संपत्ति का मालिक बन बैठता है । जिसको चिथड़ा पहनना भी मुमकिन नहीं होता, वह रात को स्वप्न में रानी बन बैठती है । बुलबुल को जो छू भी नहीं सकता, वही शिवशंभू स्वप्न में रातभर बुलबुलों के बीच दौड़- धप करता रहता है, खेलकूद करता रहता है । क्लास में जिसको टेढ़ी नजर से भी कोई नहीं देखती है, वही स्नेहिल स्वप्न में कैसे लड़कियों का मध्यमणि बन जाता है ? गरीबों की कमियों की पूर्ति काश, स्वप्नों में पूरी न होकर वास्तव में पूरी हो जाती, तो कितना महान होता यह भारत !



क्रिंग---क्रिंग क्रिंग - क्रिंग



फोन को आलस्य एवं नफरत की भावना से देखा । इतने में घड़ी की घंटी बजी ।



टन- टन - - -टन ---।



“अरे सात बज गया! - घड़ी की ओर देखते हुए स्नेहिल ने सोचा - अरे काफी देर हो चुकी है । पिकनिक जो जाना है । कब निकलू ? कब जाऊँ ? कहीं मुझे छोड़कर न जाए पिकनिक । हाय भगवान अब क्या करूँ ?



- क्रिंग - क्रिंग



झट से बिस्तर से उठकर फोन के पास गया स्नेहिल । नीरस शब्दों में कहा - “क्या बात है ?”



“सोरी! सोरी !” - स्नेहिल का चेहरा उतर गया । यह तो करीम का फोन था - "सोरी भाई ! मैं कोई दूसरा समझ रहा था । करीम बुरा न मानना । बोलो क्या बात है ?”



"क्या?



एक्सिडेंट ?



-



पिकनिक कैन्सेल ? नीता गिर गई ?-सीढ़ी से? अभी अस्पताल में ? नहीं नहीं ! यह कभी नहीं, कुछ नहीं होगा । मैं दोनों हाथ, दोनों पाँव चाहे, दे दूँगा, मगर उसे कुछ होने नहीं दूंगा।



करीम तुम बाइक लेकर आ जाओ । मैं तुम्हारे साथ जाऊगा





• स्नेहिल बोलता चला गया-



क्रिंग - - - क्रिंग -क्रिंग ---क्रिंग



"अरे भाई क्यों परेशान करते हो! मुझे देर हो रही है। मुझे पिकनिक जाना है।



न चाहते हुए भी बिना देखे ही टेलीफोन टेबिल पर रख दिया था। टेलीफोन झट से जमीन पर गिर पड़ा । टेलीफोन टूट गया । मुँह धोने को भी भूल गया । बिना टूथ ब्रश किए, बिना कंघी किए उलझे हुए बालों से वह झट से घर से निकल पड़ा । एक-एक पल एक-एक युग-सा लगा। हड़बड़ी में सामने के दरवाजे पर धक्का भी लगा । सिर पर काफी चोट भी लगी। पर न देखने के लिए समय है, न सोचने के लिए, अपने आप बाया हाथ सिर पर गया । हाथ को सिर से हटाकर देखा कि उसमें थोड़ा-सा खन लगा हुआ है । सबकुछ नजरंदाज कर बाहर निकल पड़ा । उसे ध्यान ही नहीं रहा कि चप्पल उल्टा पहन रखा है । शर्ट के बटन का भी वही हाल है । तबतक करीम आ चुका था । स्नेहिल को लगा कि समय आज तीर-सा भाग रहा है । न जाने अस्पताल आज उठकर कहाँ चला गया ? पता नहीं घड़ी की काटे इतनी जल्दी कहाँ भागे जा रहे हैं ? क्यों आज दुनिया भर के लोग इतनी सुबह रास्ते में भीड़ करने के लिए निकाल पड़े हैं ? स्नेहिल की परेशानियाँ बढ़ने लगीं। कैसी है यह जिंदगी ! एक तरफ सुनहरा मधुर-मधुर स्वप्न, दूसरी तरफ कठोर वास्तविकता ! स्नेहिल की आँखों से आँसू निकल पड़े । पैर डगमगा गए ! आवाज काँपने लगी 'तुम्हें कुछ नहीं होगा । कुछ नहीं होगा । तुम मेरी ड्रीम गर्ल हो । ड्रीम गर्ल ।" " अस्पताल पहुँचनेवाला ही था, अस्पताल का दरवाजा सामने ही था, अचानक स्नेहिल बेहोश हो गया । शायद चोट काफी लग चुकी थी । अंदरूनी चोट की कोई भरोसा नहीं होता । बाइक से गिरनेवाला ही था, करीम किसी तरह उसे संभालकर अंदर ले गया ।दो दिन बाद जब होश आया, स्नेहिल ने देखा कि उसके सामने के बैड पर नीता सोई हुई है । दोनों हाथों पर प्लाष्टार लगा हुआ है। एम. ए. के सभी विद्यार्थी दोनों के सामने खड़े हैं। सभी गंभीर मुद्रा में हैं, जैसा कि हाल ही में बज्रपात हुआ हो । स्नेहिल को कुछ याद नहीं कि कैसे वह अस्पताल के बैड पर आ गया । गंभीर परिवेश को हल्का करने के उद्देश्य से करीम ने कहा - "जल्दी-जल्दी दोनों ठीक हो जाओ । पिकनिक मनाना होगा । बड़े धूमधाम से पिकनिक मनाना होगा ।" पर उसने उसे यह नहीं बताया कि उसने उसे ब्लड भी दिया था ।चाहते हुए भी स्नेहिल कुछ बोल नहीं पाया । इशारा किया । ओठ काँपने लगे । शायद वह कहना चाहता है - "ड्रीम् गर्ल तुम ठीक हो न ? ड्रीम् गर्ल तुम सही सलामत हो न ?"



 



 



 


Published

कामेंग ई-पत्रिका

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ISSN : 3048-9040 (Online)

Author

Prof. Dilip Kumar Medhi

Professor

Department of Hindi

Guwahati university, Assam

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Volume 1|Issue 1| Edition 1 | Peer reviewed Journal | July-December, 2024 | kameng.in

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